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भूमिका.
प्रकट है, कि भारतवर्ष के विद्वानोंने वेद, न्याय, व्याकरण, काव्य, साहित्य, गणित, वैद्यक आदि विषयों में जैसा उत्तमोत्तम श्रस किया, पैसा इतिहास विद्यामें नहीं पायाजाता है. क्योंकि मिसर, यूनान, चीन
आदि देशोंका, जैसा चार पांच हजार वर्ष पहिलेका शृंखलाबद्ध इतिहास मिलता है, वैसा इस देशका नहीं मिलता. बुद्धके पूर्व और कुछ उत्तर समयका अर्थात् सूर्य, चंद्र, नन्द, मौर्य, सुंग, काण्व, आंध्र, आदि राजबंशियोंका इतिहास महाभारत, रामायण, विष्णुपुराण, मत्स्यपुराण, श्रीमद्भागवत, वायुपुराण आदि धर्म ग्रन्थों, और रघुवंश, मुद्राराक्षस आदि काव्य और नाटकके पुस्तकों में बिखरा हुआ मिलता है, परन्तु उनमें बहुधा शुद्ध ऐतिहासिक वृत्त धर्म कथाओं के साथ मिले हुए होने, और राजाओंके चरित्र मनमाने तौरपर अतिषयोक्तिके साथ लिखनेसे ऐसा गड़बड़ होगया है, कि उनके सत्यासत्यका निर्णय करना दुष्कर है, ठीक ऐतिहासिक रीतिसे लिखा हुआ पुस्तक केवल कश्मीरका इतिहास राजतरंगिणी है, जिसके रचनेका प्रथम प्रयास भी मुसल्मानोंके इस देश में आनेके पश्चात् ( शक संवत् १०७० = विक्रम संवत् १२०५ में ) कश्मीरके अमात्य चंपकके पुत्र कल्हणने किया था. इसके अतिरिक्त श्रीहर्षचरित, गांडवहो, विक्रमाङकदेवचरित, नवसाहसांकचरित, पृथ्वीराजविजय, कीर्तिकौमुदी, व्याश्रयकोश, कुमारपालचरित्र, हम्मीरमहाकाव्य आदि कितने एक ऐतिहासिक काव्य, और प्रबन्धचितामणि, प्रबन्धकोश आदि प्रबन्ध ग्रन्थ समय समयपर लिखेगये थे, परन्तु सारा भारतवर्ष एकही प्रबल राजाके अधिकार में न रहने, और अलग अलग विभागोंपर अनेक स्वतन्त्र राजाओंके राज्य होनेसे ये पुस्तक भी इस विस्तीर्ण देशके बहुत छोटे विभागका थोड़ासा इतिहास प्रकट करनेवाले हैं, सो भी अतिषयोक्तिसे खाली नहीं. तदुपरान्त भाषा कविताके रासा आदि ग्रन्थ, और बड़वा भाटों के बंशावलीके पुस्तक मिलते हैं, परन्तु ये सब इतिहास की दृष्टिसे लिखे न जाने, और आधुनिक समयके बने हुए होनेपर भी अधिक प्राचीन दिखलाये जाने के लिये इनमें बहुतसे कृत्रिम नाम भरदेनेसे अधिक उपयोगी नहीं हैं.
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