SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६३) मिलती है, और कितनेएक अक्षर देवनागरीके से हैं. इसमें जिह्वामूली. यका चिन्ह इसी लिपिके 'व' सा है, तथा 'व' और 'ब' में भेद नहीं है. लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर:__ श्रीदुर्गगणे नरेन्द्रमुख्ये सति संपादितलोकपालवृत्ते । अवदातगुणोपमानहेतौ सर्वाश्चर्यकलावि श्चितीह ॥ यस्मिन्प्रज्ञा : प्रमुदिता विगतोपसर्गा: स्वैx कर्मभिर्विधति स्थितिमुर्चरेशे । सत्व(त्वा)ववो (बो)धविमलीकृतचेतसश्च विप्राः पदं विविदिषन्ति परं स्मरारे ः ॥ य : सर्वावनिपालविम्मयकर : सत्वप्रवृत्त्युज्व(ज्ज्वलज्वालादग्धतमाक्षतारितिमि लिपिपत्र १३ वां. यह लिपिपत कोटाके पाससे मिले हुए, राजा शिवगणके मालय संवत् ७९५ के लेखकी छापसे (?) तय्यार किया है. इसकी लिपि लिपिपत्र ११ वें और १२ वें से मिलती हुई है. . लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर: नम: शिवाय नम :(म)स्सकलसंसारसागरोत्तारहेतवे । तमोग भिसंपातहस्तालम्बाय शम्भवे ॥ श्वेतदीपानुकारा X क्वचिदपरिमितेरिन्दुपादै : पतद्भिनित्यस्थैरसान्धकार : क्वचिदपि निभृतै : फाणिपैोगभागैः सोष्माणो नेत्त्रभाभिः क्वचिदतिश(शि)शिरा जनुकन्याजलो(लो) धैरित्थं भावैविरुद्धैरपि जनितमुद: लिपिपत्र १४ वां. यह लिपिपत्र गुजरातके राष्ट्रकूट ( राठौड़ ) राजा कर्कराजके शक संवत् ७३४ के दानपत्रकी छापसे (२) तय्यार किया है. इसकी लिपि लिपिपत्र ७ वे से बहुत मिलती हुई है (३). (१) इण्डियन एण्टिकरी (जिल्द १८, पृष्ठ ५६ के पासकी प्लेट). (२) इण्डियन एण्टिकरी (जिल्द १२, पृष्ठ १५८-६१ के बीच की प्लेटे). (३) इस दानमत्र में राजाके हस्ताक्षरको लिपि दानपत्रको लिपिसे भिन्न दक्षिणको लिपि है, और इन्तमें ४ पंक्ति भिन्नही लिपिको हैं, जिनमें से मुख्य मुख्य अक्षर छांट [ ] के भीतर रख हैं. For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy