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(२५) लोगोंका पराजय कर अपने नामका संवत् चलाया. इसका प्रारंभ कलि. शुगके (४९९५-१९५१ % )३०४४ वर्ष व्यतीत होने पर मानाजाता है, जिससे इस संवत्का पहिला वर्ष कलियुग संवत् ३०४५ के मुताबिक होता है. विक्रम संवत्की आठवीं शताब्दी तक के किसी पुस्तक, लेख, या दानपत्रमें विक्रमका नाम संवत्के साथ लिखा हुआ (विक्रम संवत् ) अबतक नहीं पाया गया (१). धौलपुरसे मिले हुए चौहान चंडमहासेनके लेख में (२) पहिले पहिल विक्रम संवत् ८९८ लिखा हुआ मिला है, तत्पश्चात् इस संवत्की प्रवृत्ति दिनोंदिन अधिक होती रही...
कुमारगुप्त पहिले के समयके मंदसोरके सूर्यमंदिरके लेखमें संवत् इस तरह लिखा है:
मालवानां गणस्थित्या यात(ते)शतचतुष्टये त्रिनवत्यधिके ब्दानाम्र (मृतो सेव्य घनस्व(स्त)ने ॥ सहस्यमास शुक्लस्य प्रशस्ते हि लयोदशे ( ३ ). ___ "मालवगण( मालवजाति) की स्थितिसे गत वर्ष ४९३ सहस्य (पौष) शुक्ला १३".
मन्दसोर ही से मिले हुए यशोधर्मके लेखमें भी संवत् इसी तरह दिया है:
पञ्चसु शतेषु शरदा यातेष्वेकान्नवतिसहितेषु । मालवगणस्थितिवशात्काल ज्ञानाय लिखितेषु (४).
" मालवगणकी स्थितिसे गत वर्ष ५८९".
(१) डाक्टर बुलरने काठियावाड़से मिला हुआ एक दानपत्र इण्डियन एण्टिकेरीको जिल्द १२ वौं के पृष्ठ १५५ में छपवाया है, जिसमें विक्रम संवत् ७९४ कार्तिक कृष्णा अमावास्या, आदित्यवार, ज्येष्ठा नक्षत्र, और सूर्य ग्रहण लिखा है, परन्तु उक्त तिथिको रविवार, ज्य ठा नक्षत्र और सूर्य ग्रहण गणितसे सावित न होने, और उसकी लिपि इतनो पुरानो न होनेके कारण प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता फ्लोट साहिब ( इण्डियन एण्टिकरी, जिद १६, पृष्ठ १८७-८८), और डाक्टर कोलहानने (इण्डियन एण्टि केरो, जिल्द १५, पृष्ठ ३७०-७१) उस दानपत्रको कृत्रिम (नाली) ठहराया है.
(२) वसनव [अ]ष्टी वर्षा गतस्य कालस्य विक्रमाव्यस्य (1) वैशाखस्य सिताया (यां) रविवारयुतहितीयायां । चन्द्र रोहिणिसंयुक्त ( युक्ते ) लम सिंघ (६)स्य भोभने योगे ( इण्डियन एण्टिक्केरौ, जिल्द १८, पृष्ठ ३५).
(२) कार्पस इन्स्क्रिप्शनम् इण्डिीरम् ( जिल्द ३, पृष्ठ ८३ ). (४)
" (जिल्द ३, पृष्ठ १५४ ).
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