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के चिन्हका भी उल्लेख किया है. रेफ और स्थरितके चिन्ह लिखे हुए अक्षरोंपर ही लगसक्ते हैं. अष्टाध्यायीके छठे अध्यायके ३ रे पादके ११५ वें सूतसे ऐसा पायाजाता है, कि पाणिनिके समयमें चौपायोंके कानपर ५ व ८ के अंक, और स्वस्तिक ( साथिया) आदि चिन्ह (१) किये जाते थे. उसी ग्रन्थसे यह भी मालूम होता है, कि उस समयमें "महाभारत" (२) और आपिशलि (३), स्फोटायन (४), गार्य (५), शाकल्य (६), शाकटायन (७), गालव (८), भारद्वाज (९), और काश्यप (१०)प्रणीत व्याकरणके ग्रन्थ भी उपलब्ध थे, क्योंकि इन ग्रन्थों मेंसे पाणिनिने नियम उद्धत किये हैं. वेदोंके पुस्तक भी पाणिनिके समयमें मौजूद होंगे, क्योंकि अष्टाध्यायीके ७ वें अध्यायके पहिले पादका ७६ वां सूत्र "छन्दस्यपिदृश्यते" ( वेदों में भी दीख पड़ता है ) है; " दृश" (देखना ) धातुका प्रयोग, जो वस्तु देखी जाती है, उसके लिये होता है, इसवास्ते इस सूत्रका तात्पर्य वेदके लिखित पुस्तकोंसे है.
ब्राह्मण ग्रन्थों में "काएड" और "पटल" शब्द मिलते हैं, जिनका अर्थ " पुस्तक विभाग" है. ये शब्द ब्राह्मण ग्रन्थोंकी रचनाके समयमें भी पुस्तकोंका होना बतलाते हैं.
शतपथ ब्राह्मण (११) में लिखा है, कि " तीनों वेदों में इतनी पंक्तियां दोधारह हैं, जितने एक वर्षमें मुहूर्त होते हैं ". एक वर्षके ३६० दिन,
और एक दिन में ३० मुहूर्त होते हैं, इसलिये एक वर्ष में ३६०४३० = १०८०० मुहर्त होते हैं, अर्थात् तीनों वेदोंमें १०८०० पंक्तियां दोबारह हैं. इतनी पंक्तियोंकी गणना उस हालतमें होसक्ती है, जब कि तीनों वेदोंके लिखित पुस्तक पाम हों.
(१) कर्ण लक्षणस्याविष्टाष्टपञ्चमणि भिन्नच्छिन्न च्छिद्र सुवस्वस्तिकस्य (६।३।११५). (३) महान् व्रीहपरागृष्टीध्वासजाबालभारभारत० (६।२।३८), (३) वासुम्यापिशले : (६।१४९२). (४) अवङ स्फोटायनस्य ( ६।१।१२३). (1) ओतोगार्थ स्य (८।३।२०). (६) लोपः शाकल्यस्य (८३।१०). (७) लङ : भाकटायनस्यैव (३।४।१११). मद्रास प्रसिडेन्सी कालेजके प्रधान संस्कृत अध्यापक डाक्टर आपटने 'भाकटायनका व्याकरण अभयचन्द्रसूरीको टीका सहित छपवाया है, (८) इकोस्खोऽयोगालवस्य (६।३।५१), (2) ऋतो भारद्वाजस्य ( ७२१६३), (१०) दृषिधिकृशः काश्य पस्य (१।२।२५). (११) शतपथ ब्राह्मगा काण्ड १० वां (पृ. ७८६).
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