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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ७६ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा हवे तिहां जिनने रहरि, करतो सेवा कोड ॥ विनय धरीने विनवे, जुगते बे कर जोड ॥४॥ ॥ ढाल पहेली॥ ॥ प्रभु अर्ज सुणी अहीं आवो, मंजारी बाल बचावो॥ए देशी॥ आ अर्ज प्रभु अवधारो, तुम पासे राखी तारो ॥ए आंकणी॥ उपसर्ग छे घणा आपने, नाथ कहुं शिर नामी ॥ बार वर्ष वैयावच बाबत, साथे रहुं हुं स्वामी ॥आ अर्ज०॥१॥ नाथ कहे कदी थयु नथी ए, थशे नही नव थावे ॥ २शक्रादिकनी सहाय थकी जे, अरिहा ज्ञान उपावे ॥ है इंद्र थशे जे भावी, छे रीत अनादि आवी ॥२॥ सर्व जिनेश्वर केवल संपद, निज शक्ते निपजावे ॥ ते माटे उपसर्ग थशे ते, सहीश समता भावे ॥हे इंद्र०॥३॥ हरवा तव मरणांत कष्टने, सिद्धारथने ठावे ॥ प्रेमे जिन माणक पद प्रणमी, सुरपति स्वर्गे जावे ॥ आ अर्ज प्रभु अवधारो० ॥४॥ ॥दोहा॥ बहुल ब्राह्मणने गृहे, परमान्ने जिनराय ॥ प्रथम करे तय पारj, पंच दिव्य प्रगटाय ॥१॥ चेलोत्क्षेप सुगंध जल, वृष्टि दुंदुभि शब्द ।। अहो दान उद्घोषणा, थाय कनकनो ५अब्द ॥२॥ १ इन्द्र २ इन्द्रादिकनी. ३ सिद्धार्थ व्यंतरने ४ खीरे. ५ वरसाद. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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