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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा दीक्षाकेवलमोक्षपर्वतमहाधनेषु संपूजितो, भव्यानां विदधातु सोंतिमजिनो भद्रावली सर्वदा ॥१॥ ॥ मंत्रः॥ ओ हाँ श्री परम पूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते महावीरजिनेंद्राय परमेष्ठिने, जलं० चंदन० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षतं० नैवेद्यं० फलं० यजामहे स्वाहा ॥ ॥ इति प्रथम च्यवनकल्याणकपूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ द्वितीय जन्मकल्याणक पूजा प्रारंभः ॥ ॥दोहो॥ १भूप स्वप्न पाठक भणी- पूछे तेडी प्रभात ॥ स्वम अर्थ सोहामणा भाखे ते भली भात ॥१॥ ॥ ढाल पहेली ॥ राग केरबो ॥ ॥ गोपीचंद लडका बादल वरशेरे कांचन महेलमे ॥ ए देशी ॥ सिद्धारथ राजा, स्वप्न महिमारे तुमे सांभलो ॥ए आंकणी।। जिनवर २चक्री जननी निरखे, चौद स्वप्न ए चंग। वासुदेवनी ३प्रम विलोके, सात स्वप्न सुख संगरे ।सिद्धास्थ०॥१॥ १ राजा. २ चक्रवर्ती. ३ माता. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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