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श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा ॥ ढाल ॥राग देश सोरठ ॥ ॥ ताल खींमटो॥
॥ भाइ नाम समजीने बेशी रहिये । प. देशी ॥ भाइ तजो भामानी संगत मूंडी, रचो प्रभुनी दीपक पूजा रूडी । भाइ० ॥ ए आंकणी ।। भामा तमारी बुद्धि भमावशे, करणी करावशे कूडी ॥ रजनी दिवस निज बंधनमा राखशे, सी जप तप नाखशे झुडी ॥ भाइ ॥॥१॥ बाहिर दृष्टिये जोतां बालिशने, रामा लागे अति रुडी ।। ज्ञान दृष्टिये भासे ज्ञानिने, महामल मूतरनी कुंडी ॥ भाइ ॥२॥ ४विकट कपटनी पेटी ५वनिता, लुटारी मोहनी लूडो॥ रंचे एनो जो विश्वास राखशो, तो मुलगी गुमावशो मूडी ।। भाइ ॥ ३॥
कामिनी केरी संगत करतां, आपद पामशो उंडी ॥ वीर्य विभूति खोशोने वागशे, बधा देशमां अपजश दूंडी ॥ भाइ ॥ ४ ॥ तरुणीनी, संगत राची रहे तेनी, उंच गति गइ उडी॥ जिन माणक गणधर इम जल्पे, जरा जुवो जैनागम ढूंढी ।। भाइ तजो भामानी संगत मुंडी ॥५॥
१स्त्री. २ मूर्ख. ३ स्त्री. ४ विशाल. ५ स्त्री. ६ स्त्री. ७ धन माल रिद्धि.
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