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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजासंग्रह ११९ सिद्ध सुरीश वाचक साधु ३दर्शन सुखकरं ॥ वरज्ञान पद चारित्र तप ए॥ नमो ॥२॥ श्रीपालराजा शरीरसाजा सेवतां नवपद वरं ॥ जगमांहि गाजा कीर्ति भाजा ॥ नमो० ॥३॥ श्री सिद्धचक्र पसाय संकट आपदा नाशे अरं ॥ वळी विस्तरे सुख मनोवांछित ॥ नमो० ॥४॥ आंबील नव दिन देव वंदन त्रण टंक निरंतरं ॥ बेवार पडिकमणां पलेवण ।। नमो० ॥५॥ त्रण काळ भावे पूजिये भव तारकं तीर्थकरं ।। तिम गुर[ दोय हजार गणिये ॥ नमो० ॥६॥ इम विधि सहित मन वचन काया वश करि आराधिये ॥ तप वर्ष साढा चार नवपद शुद्ध साधक साधीये॥गद कष्ट चूरे ५शर्म पूरे । यक्ष विमलेश्वर वरं ।। श्रीसिद्धचक्र प्रताप माणिक विजय विलसे सुखभरं ॥७॥ ॥श्री पर्युषणानी थोयो । ॥ गौतम बोले ग्रंथ संभाली ॥ ए देशी ॥ पामी पर्व पजुषण सार, सत्तर भेदी जिन पूजा उदार, करिये हरख अपार ।। सद्गुरु पास धरी बहु प्यार, कल्पसूत्र सुणीये सुखकार, आळस अंग उतार | धरमसारथि पद सुपनां चार, सुपनपाठक आव्या दरबार वीर जनम अधिकार ॥ दीक्षाने निर्वाण विचार, षट व्याख्यान अनुक्रमे धार, मुणतां होय भवपार ॥१॥ नमि सुव्रत मल्लि अर ६कंत, कुंथु शांतिने धर्म अनंत, विमळ वासुपूज्य संत ॥ श्रीश्रेयांस शीतळ भगवंत सुविधि चंद्र सुपास भदंत, पद्म सुमति अरिहंत ॥ १ आचार्य. २ उपाध्याय. ३ समकित. ४ रोग ५ सुख ६ स्वामी अथया मुंदर. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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