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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री दीपाली देवचंदन मातंगजक्ष सिद्धायिका सवि संकट चूरे, मुनिमाणक सहु संघनां मन वांछित पूरे ॥ ४ ॥ ।। इति प्रथम श्रीवीरस्तुतिः ॥ ॥ अथ द्वितीय श्रीवीरस्तुतिः ॥ ॥ उपजातिवृत्तं ॥ अनंतविज्ञानरमानिधान प्रशस्यप्राज्यातिशयप्रधानं ॥ स्वयंभुवं मंदरशैलधीरं ।। नवीमि वीरं भवतापनीरं ॥१॥ कंदर्प-मातंग-वधे मृगेंद्रा, मोहांधकारक्षणने दिनेंद्राः ।। नागेंद्र-देवेंद्र-नरेंद्र-वंद्याः, शिवाय मे संतु समे जिनेंद्राः॥२॥ संसारनीराकरयानपात्रं, रेकावली वल्ल्यभिलावदात्रं ।। सद्बोधबीजं सुपदाभिरामं, जैनागमं साधु नमामि कामं ॥३॥ मातंगयक्षः कृतसंघरक्षः, श्रीवीरतोथेश्वरभक्तिदक्षः ।। दीपालिकापर्वणि वः समृद्धि, ददातु माणिक्यमुनेश्च सिद्धि ।।४।। ॥ इति द्वितीय श्रीवोरस्तुतिः॥२॥ ॥ अथ श्री वीर स्तवनं ॥ ॥ जीरे म्हारे जाग्यो कुमर जाम ॥ ए देशी ॥ जीरे म्हारे श्रीमहावीर जिणंद, सिद्धारथ २मुत गुणनिलो जीरेजी। जीरे त्रिशलामात मल्हार शासनपति त्रिभुवन तिलो जीरेजी ॥१॥ नदीवर्द्धन भ्रात, भगिनी जास सुदंसगा जीरेजी ॥ जीरे० ॥ नारी जसोदानो कंत, सेवे जस पद ५सुर घणा जीरेजी ॥२॥ एकशत दश पुण्यपाप, फल अध्ययन जिणे कह्यां जीरेजी॥जीरे० १ एनामनी देवी. २ पुत्र. ३ व्हेन ४ चरण ५ देव. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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