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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०९ श्री दीपाली देववंदन ॥ श्री दीपालिका देववंदनं ॥ ॥ श्री वीरचैत्यवंदनं ॥ वीर जिनेश्वर केवली, नयरी अपापा आया । हस्तिपाल रज्जुक सभा, २चरम चोमासु ठाया ॥१॥ कार्तिक मास अमावसी, रजनीए जगभोण ॥ सोल पहोर देह देशना, पहोंच्या पद निर्वाण ॥ २ ॥ भावाद्योत गयो प्रभु, जिनमाणक शिवठाण ॥ . द्रव्योद्योत दीपालिका, करता ५गण राजान ॥३॥ ॥ इति प्रथमचत्यवंदनं ॥१॥ ।। अथ द्वितीयचैत्यवंदनं ॥ मानव दानव देवता, मलिया कोडाकोड ।। कल्याणक महिमा तदा, करता होडाहोड ॥१॥ मेराइयां हाथे ग्रयां, दीपकमाला कीध ॥ दीवाली ते दिनथकी, जगमां थइ प्रसिद्ध ॥२ ।। जिनमाणक महावीरनु, शिव कल्याणक एह ॥ लाख कोडी फल छठ करी, आराधो गुणगेह ॥३॥ ॥इति द्वितीयचैत्यवंदनं ॥ २ ॥ ॥ अथ तृतीयचैत्यवंदनं ॥ ज्ज्ञात कुलांबर चंद्रमा, त्रिशला नंदन वीर ॥ १ कारकुननी सभा. २ छेल्लु. ३ मोक्ष. ४ सामान्य केवलीमां रत्न समान.५ अढार गणराजाओ.६ मोक्ष. ७ सिद्धार्थराजाना कुल रूप आकाशमां चंद्र. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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