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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वास्तुक पूजा जलं० चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षतं नैवेद्यं० फलं. यजामहे स्वाहा ॥ इति पंचमपूजा संपूर्णा ॥ ॥अथ कलश ॥सेवो सज्जन सेवो सज्जन ॥ ए देशी सेवो सजन सेवो सञ्जन, शांतिनाथ सुखदाया ॥ कमनीय वास्तुक पूजन कारण, उत्तम एह उपाया ॥ सेवो० ॥ ए आंकणो ॥ लौकिक लोकोत्तर दो भेदे, वास्तुक रयजन कहाया । ३दुरित निमित्त लौकिक दर्शाया, लोकोत्तर शुभ गाया ॥ सेवो० ॥१॥ लोकोत्तर वास्तुक आचरवा, स्थिर करी मन वच काया ॥ प्रेमे अष्ट प्रकारे पूजो, श्री शांति जिनराया ॥ सेवो० २ एथी आधि व्याधि उपद्रव, नासे सर्व ५अपाया ॥ मंगल माला विमला कमला,लहीये सुख समुदाया ॥ सेवो ३ तप गण गगन ९गगनमणि गिरुआ, विजयसिंह सरिराया। सत्य कपूर क्षमा जिन उत्तम, विजय पदे सोहाया ॥सेवो०॥४॥ पद्म रूप वर कीर्ति विजयना, श्री उद्योत अमाया ॥ अमर गुमान विजय गुणवंता, शिष्य परंपर आया ।सेवो०॥५॥ १ सुंदर. २ पूजन. ३ पापनुं कारण. (मिथ्यात्व होमादियुक्त) ४ कल्याणकारी. ५ संकटकष्ट. ६ लक्ष्मी . ७ समूह. ८ आकाश. ८ सूर्य. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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