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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वास्तुक पूजा कुल कीर्ति कर कुलवृत्ति कर, कुल जस कर आधार ॥ कुल नंदि कर कुल वृद्धि कर, कोमल रेकर पद साररे ।। देवानुप्रिया० ॥ ३॥ सुंदर लक्षण लक्षित ३तनुधर, शशि सम सौम्याकार ॥ प्रिय दर्शन तुज पुत्र थशे वर, रूप कला भंडाररे ॥ देवानुप्रिया०॥४॥ ५प्रियतम वाणी सत्य प्रमाणी, बेठी जइ निज ठाम ॥ हर्ष भराणी जपती शाणी, जिन गुरु माणक नामरे ।। देवानुप्रिया तें, स्वम सारामां सारां देखियां ॥५॥ ॥काव्यं । गीति वृत्तं ॥ कांत कांचनकांति, भव्यनिशांतं ध्वस्तभवभ्रांति ॥ शांतं भुवि कृतशांति, स्तुवे नितांत जिनेश्वरं शांति ॥१॥ मंत्रः।। ओ ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते शांतिजिनेंद्राय जलं० चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षत नैवेद्यं० फलं० यजामहे स्वाहा ॥ इति द्वितीयपूजा संपूर्णा ।। ॥ अथ तृतीय पूजा प्रारंभः॥ ॥दोहो॥ ६पंडितने तेडी प्रगे, रंगे पूछे राय ॥ सरस सुपन फल सांभली, विगते करे विदाय ॥१॥ १ समृद्धि. २ हाथ पग. ३ शरीर. ४ चंद्र. ५ स्वामी. ६ सुपन पाठक. ७ सवारमां. ८ दान सन्मान करीने. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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