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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०. आन दुगुर्गों का नाश करने हेतु सद्गुणों का बार-बार चिंतन, मनन व ध्यान करना चाहिए। जहाँ-तहाँ सिर्फ दुगुर्गों को ही खोजना या उसके प्रति आकृष्ट होने के बजाय जहाँ-तहाँ सद्गुणों को ही देखना और उसका ध्यान रखना, यह अन्य कार्यों अनंतगुना उत्तम कार्य है। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी पादरा दिनांक : २२-२-१९१२ द्वेष की अशुद्ध परिणति का सर्वरूपी परित्याग कर स्वभाव में सदैव लीन....तल्लीन रहो। शुद्ध परिणति में प्रायः ज्ञान, दर्शन व चारित्रादि का समावेश होता है। दर्शन ज्ञान की सहायता करता है और चारित्र स्वयं भी ज्ञान का सहायक है। अथति ज्ञान के कारण चारित्र की शुद्धि होती है। वैसे ही चारित्र से भी ज्ञान की शुद्धि होती है। आत्मा के गुणों में ही उपयोग होने से संवर भाव की प्राप्ति होती है। विभावावस्था में रूपांतर हुए आत्मवीर्य को स्वभावावस्था में पल-प्रतिपल रूपांतरित करना चाहिए।आत्मा के उपयोग द्वारा अशुद्ध भाव को शुद्ध भाव के रूप में रूपांतरित कर सकते हैं। शुद्धोपयोग में रमणता करने मात्र से ही अशुद्ध भाव नष्ट हो जाते दुगुर्गों का नाश करने हेतु सद्गुणों का बार-बार चिंतन-मनन व ध्यान करना चाहिए।जहाँ-तहाँ दुर्गुणों को खोजना अथवा दुर्गुणों के प्रति आकृष्ट होने के बजाय जहाँ-तहाँ सद्गुणों को ही देखना और उसका ध्यान रखना, यह अन्य कार्यों से अनंतगुना उत्तम कार्य है। दुर्गुणों के कारण आत्मा में रहे सद्गुणों का आच्छादन होता हैं। फलस्वरूप दुर्गुणों को ही सदगुणों में परिवर्तित कर देना चाहिए। हे आत्मन्! सद्गुणों की प्राप्ति हेतु तुम पल-प्रतिपल निरंतर प्रयत्नशील रह! For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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