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२५. ज्ञान और क्रिया
यह स्वाभाविक नियम है कि पहले ज्ञान
और बाद में क्रिया । ज्ञान के बल पर ज्ञानीजन द्रव्य, क्षेत्र व कालादि प्रसंग पर नये कार्य कर सकते हैं। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
झघडिया दिनांक : १२-२-१९१२
नदी से नया प्रवाह निकालना सर्वस्वी मेघ के हाथ में है। वैसे कोई नदी किसी अन्य नदी से प्रवाह निकालने में शक्तिमान नहीं होती। उसी तरह विचार रूपी मेघ से आचार रूपी नदी का प्रवाह जन्म ले सकता है।
मेघ नदी के आकार-प्रकार व स्वरूप में परिवर्तन करने में शक्तिमान होता है। आचारों का वास्तविक आधार-केन्द्र विचार ही है। दुनिया भर में क्रिया के जितने आचार दृष्टिगोचर होते हैं। उनके सम्बन्ध में ऐसे अनुभव प्रमाण बताया जाता है कि इससे पूर्व उक्त आचारों को उत्पन्न करनेवाले अमुक-अमुक विचार अवश्य हुए थे। यह स्वभाविक नियम है कि पहले ज्ञान और बाद में क्रिया । इससे ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि मानव के अमुक प्रकार के आचारों के फलस्वरूप उसके मन म अमुक प्रकार के विचार अवश्य होंगे।
किसी विषय के सम्बन्ध में विचार करते-करते मगज थक जाए...श्रमित हो जाए उसके पूर्व ही अधिक विचार करना बंद कर देना चाहिए। कारण शारीरिकक्रिया करते हुए मन को विचार करने में अधिक परिश्रम होता है। इस तरह दिन गत शारीरिक कष्ट करनेवालों के बनिस्बत ज्ञानाभ्यासियों को सर्वाधिक परिश्रम होता है।
जबकि मन की क्रिया करते मानसिक विचार की शुभ क्रिया पगा: अधिकाधिक लाभ प्रदान करती है। उदाहरणार्थ यदि किसी का मन परिवर्तन किया जाय तो शीघ्र ही उसकी काया तथा वाणी के व्यापार में परिवर्तन होता है।
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