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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१. अभयदान सर्वोत्तमदान जिम धर्म में दया नहीं है, उसे धर्म की संज्ञा देना सरासर गलत है। दया रूपी नदी-तट पर हमेशा धर्म रूपी अंकुर प्रस्फुटित होता है। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी सुरत दिनांक : ६-२-१९१२ मानव द्रव्य अभयदान द्वारा तीर्थंकर पट प्राप्त करता है। मौत के मुख में जाते प्राणियों को बचाने से महान लाभ प्राप्त होता है। जो दूसरों को अभयदान देता है, निम्मंदेह वह निज आत्मा को निर्भय बनाता है। अभयदान देने से अभय प्राप्त हो सकता है, इसमें शंका के लिए कोई स्थान ही नहीं है। स्वयं को यदि कोई अभय प्रदान करता है तो हमें जितना आनन्द मिलता है। ठीक उतना ही आनन्द अन्य जीवों को अभयदान देने से प्राप्त होता है। जो अभयदान देते हैं, निस्संदेह उन्हें तीन लोक का ऐश्वर्य प्राप्त होता है। अभयदान देनेवाले अपने पाप कर्मों का क्षय करते हैं और अनन्य पुण्य का उपार्जन करते हैं। __ प्राचीनकालीन आर्यावर्त में सर्वत्र दया का बोलबाला था...दया का एकछत्र राज्य था । प्रायः पशु-पक्षियों की प्राण-रक्षा करने हेतु निरंतर प्रयत्न करने चाहिए। आजकल सरे आम जीवहिंसा हो रही है, असंख्य प्राणियों का वध होता है तो कई पशु मारे भूख के मर जाते हैं। ऐसे जीवों को कई दयाभक्त अभयदान देने का प्रयत्न करते हैं। जगत में सर्वत्र दया के विचार जोर-शोर से फैल जाने से अभयदान देनेवाले लोगों की संख्या में आशातीत वृद्धि अवश्य होगी। टीक वैसे ही आज के युग में अभयदान-माहात्मय समझानेवाले सच्चे उपदेशक व ऐसे साहित्य की अत्यंत आवश्यकता है। ४१ For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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