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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६. तन्मयता किसी भी कार्य को तन्मय होकर करो, अवश्य सफलता मिलेगी। तन्मय अर्थात् एकाग्रचित्त हो कर किया हुआ कार्य मन को प्रफुल्लित करता है। तन्मयता में मन को संयमित करने की अमोघ शक्ति है। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी सचीन दिनांक : २८-१-१९१२ सदगुण विहिन घटाटोप (आडम्बर: आवरण) अधिक समय तक निभ नहीं सकता। अपने में रहे सदगुणों को प्रकटित किये बिना मानव अपनी कीमत समझ नहीं सकता। कथनिक होने के बजाय कर्तव्यपरायण होकर अपना फर्ज अदा करने की आदत डालनी चाहिए। समय का सही मूल्यांकन करने की शक्ति अवगत होते ही मानव अपनी उन्नति करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है। दुर्गुणों का प्रायः विस्मरण कर निरंतर सदगुणों के स्मरण व मनन में खो जाना चाहिए। खाली दिमाग भूत का डेरा होता है और अव्यवस्था की भूलभूलैया में फंस, मार्गोन्मुख हो जाता है। अतः जो कार्य करना हो, उसमें मन को तन्मय करने की आदत डालनी चाहिए। अन्य राष्ट्र के लोग अपने निजी-जीवन के कार्यों में भी एकाग्र चित हो, ग्वीकृत जिम्मेदारियों को सजगता के साथ निभाते हैं। फलस्वरूप जो कार्य करना हो, उसमें पूरी तरह समरस हो जाना चाहिए और जब दूसरा कार्य हाथ में लो तब उसमें तन्मय हो जाना जरूरी है। क्योंकि एक बार जिस कार्य को हाथ में लिया है, उसमें पूरी तरह समग्य...तन्मय हो जाने से उक्त अर्थ भली-भाँति सिद्ध होता है। साथ ही कार्य का सही अनुभव प्राप्त होता है। नियमित रूप से कार्य करते रहने ये व उममें एकाग्र चित होने का कारण हाथ में लिया कार्य सिद्ध होता है। अतः जो भी कार्य सम्पन्न करने हों, उसमें रुचि ३१ For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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