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८. गुरु कृपा
अमृत-वृष्टि
गाजी के उपदेशों का चिन्तनमनन और निदिध्यासन करने से शिष्य के मन में अनेक शुभ नवीन विचारों का उदय होता है। जैसे रवि की किरणों से कमल का खिल कर सौरभ फैलाना। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
दिनांक : १-२-१९१२
जिन गीतार्थ गुरु के सुपात्र व विनयी शिष्य होते हैं निस्संदेह के संसार में परोपकारी कार्य तथा जैन शासन की उन्नति के कार्य करने में सदैव समर्थ होते हैं। सुपात्र साधु शिष्य गुरु के कहे बिना ही उनके अभिप्राय को संकेत मात्र से ही समझ कर उनके प्रिय धार्मिक कार्यों को अपनी शक्ति व सहयोग से गति प्रदान करते हैं।
प्राणांतोपगंत भी गुरु की आशातना नहीं करनेवाले सदैव उनकी सेवा में तत्पर रहनेवाले तथा गुरु के उपदेश का निरंतर अनुसरण करनेवाले शिष्यों के माध्यम से ही गुरुदेव धर्म-सेवा एवम् धर्मोन्नति के विविध कार्य संपन्न करने में प्रायः शक्तिमान होते हैं।
शिष्य अपने में रहे विनय, विवेक, भक्ति, गुणदृष्टि व गुरु श्रद्धा के बल पर प्रायः गुरु देव की आराधना करने में सन्नध्य होता है। वैसे ही परम भक्ति से उनके चित्त को प्रसन्न कर उनसे तात्त्विक-ज्ञान संपादन करता है।
गुरुदेव द्वाग प्रसन्न होकर प्रदत्त धार्मिक ज्ञान शिष्यों के हृदय में अच्छी तरह पल्लवित हो, शुभ व मंगल परिणाम लाता है।
शिष्य अपने कर्तव्य व अधिकार को समझ, अहर्निश गुरुसेवा में तत्पर रहे। क्योंकि गुरु देव की आज्ञानुसार आचरण करने से शिष्य के हृदय में धर्म की लौ प्रकटित होती है।
गुरु देव का कथन...वचन अनेक प्रकार के आशय से युक्त होते हैं। अतः उनका अर्थ समझ में न आये फिर भी उसके प्रति संदेह नहीं करना चाहिए, बल्कि
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