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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. जीवन रथ के दो जीवन रथ के दो बार और व्यवह पहिए- आचार पहिए है और व्यवहार आचार और व्यवहार जीवन रथ के दो पहिए हैं, अतः आचारों को व्यवहार में लाने से जीवन विकासोन्मुख होता है। दोनों के सुसंयोग से शिवगति (मोक्षपद) प्राप्त होती है। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी पालघर दिनांक : २२-१२-१९११ विचार बल के बिना आचार-व्यवहार में सरसिकता का अनुभव नहीं कर सकते। आचार-व्यवहार की महत्ता समझानेवाले विचार ही हैं। आचार का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किये बिना जीवन में उसका आचरण करनेवाले लोगों में प्रायः जडता, शुष्कता एवम् भेड़चाल वृत्ति का दर्शन होता है। क्रिया व आचार का एक ही मूलभूत अर्थ है। द्रव्य, काल, क्षेत्र एवम् भाव के माध्यम से क्रियाओं का रहस्य आत्मसात्...अवगत करना चाहिए। आचार का स्वरूप एक तरह से नदी के आकार जैसा है और विचार का स्वरूप मेघ के जल जैसा । परिणामतः विचार के बल पर आचार रूपी नदी के नये आकारों की संरचना की जा सकती हैं। जिस जिस युग में बुरे अथवा अच्छे आचार-व्यवहार की उत्पत्ति हुई हो वह उस युग के बुरे अथवा अच्छे विचारों का ही परिणाम है, यह निर्विवाद... चौकस समझ सकते हैं। __ वैचारिक बलवाला व्यक्ति द्रव्य, क्षेत्र, काल एवम् भाव के अनुसार आचरण करने की विद्या का जानकार होने के कारण शास्त्रवेत्ता गीतार्थ बन, जैन शासन को सुचारु ढंग से चलाता है और अपने अनुयायियों को मोक्ष-पद की ओर अग्रसर करता For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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