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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९. विश्राम की आवश्यक्ता अलबत्त, सच्ची शांति तो परभाव रमणता के परित्याग से ही संभव है। - श्रीमद् बुद्धिसागरसूरजी पादरा दिनांक : २६-३-१९१२ प्रत्येक कार्य करने के पश्चात विश्राम करना चाहिए। पेंचेंद्रिय एवं छटे मन को भी अमुक समय पर्यंत विश्राम देना चाहिए। यदि प्रत्येक इंद्रिय से असीम कार्य लिया जाय तो वह शकिविहीन हो निर्बल हो जाती है ।। __ मनोद्रव्य द्वारा भावमन का विषय प्रवर्तित है । यदि भावमन का कार्य भी अनियमित एवं सीमा से अधिक हो जाय तो मस्तिष्क की नसें थक जाती हैं। फलस्वरूप उससे शारीरिक व मानसिक दुर्बलता की अनुभूति होने लगती है। यदि किसी मन अथवा अवयवों पर चिंतन-मनन का अधिक बोझा... भार पड़ा जाय तो वीणा के तागें (तंतुओं) की भाँति उसका संतुलन बिगड जाता है... मस्तिष्क भ्रमित हो जाता है और उससे मस्तिष्क असंतुलित हो जाता है, यह है पागलपन की स्थिति। शारीरिक श्रमिकों के बजाय मानसिक श्रम करनेवालों के लिए अमुक समय तक विश्राम करना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि शारीरिक श्रम करने के बजाय मानसिक श्रम (कार्य) करते हुए तुरंत थकावट महसूस होती है । जिस प्रकार से फैक्ट्री की मशीनरी में चरबी का उपयोग किया जाता हैं और उसका नाश होता है । टीक उसी प्रकार मस्तिष्क का यंत्र गतिमान होता है तब वीर्य एवं रक्त का व्यय होता है | अतः मर्यादा से अधिक मानसिक विचारणा करना योग्य नहीं हैं । क्रोध, भय, लोभ, गग व अन्य कामेच्छाओं के कारण हृदय पर बुरा असर होता है । फलतः ज्यों पर्वत में विस्फोट करने से उसकी अवस्था होती है वैसी ही For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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