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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८. क्रोध को क्षमा से जीतिए 'शुद्ध प्रेम एवं शुद्ध कारण मे क्रोध तथा क्रोधीजनों पर विजय भी प्राप्त कर सकते हैं। - श्रीमद् बुद्धिसागरमूरिजी पादरा दिनांक : २५-३-१९१२ हृदय-मंदिर में जब क्रोध का विस्फोट हुआ हो तब संभव हो वहाँ तक किसी के साथ वार्तालाप नहीं करना चाहिए बल्कि क्रोध का शमन हो जाय ऐसा कोई गीत छेड़ना चाहिए या मानसिक शांति हो ऐसी कोई पुस्तक पढ़ना चाहिए अथवा किसी शांत स्वरूप का मन ही मन चिंतन करना चाहिए. यदि कभी-कभार आज्ञा-चक्र पर चित्त को स्थिर रखा जाय तो क्रोध तुरंत शांत होता है । जिसके कारण क्रोध उत्पन्न हुआ हो, ऐसे स्थान व व्यक्ति से दूर चले जाना चाहिए । अर्थात् वहाँ से हट जाना चाहिए और क्रोध के शांत होते ही पुनः आ जाना चाहिए अथवा सम्बन्धित व्यक्तियों से निकटता रखनी चाहिए। ___ अत्यंत क्रोधित होने से कषाय ममुद्धात होता है। फलतः आत्मा के प्रदेश शरीर बाहर निकल आते हैं। ठीक उसी प्रकार मनोद्रव्य का कृष्णादि लेश्या के स्वरूप में परिगमन होता है । क्रोधकी उत्पत्ति से तेजस् पुद्गलों का प्रकट न होने कारण शरीर में उष्णता का संचार होता है । फलतः अत्यंत क्रूर परिणाम होने से अशुभ गति बंध होता है। क्रोध के उदय के कारण अग्नि-शिखाकी भाँति शरीरसे जो-जोपुद्गल बाहर निकलते हैं वे भी क्रोध के संयोगों की उदीरणा में क्रोधोत्पति में परम सहायक सिद्ध होते हैं । गोशालक पर तेजोलेश्या का प्रयोग करनेवाले तापस पर क्रोध का भूत सवार हो गया था। फलतः उसने अपनी आत्मशक्ति को वक्रमार्ग पर मोड़कर उष्ण पुद्गलों ९४ For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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