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आद्य निवेदन
श्री धर्मनिष्ठ सेठ चांदमल जोधकरण गड़ियाने यह पंचामृताभिषेकपाठ प्रकाशित कर षट्कर्मनिरत श्रावकों के लिए महान् उपकार किया है। धर्मनिष्ठ दंपतियोंने व्रतोद्यापन किया, जिसके उपलक्ष्य में शास्त्रदान किया गया, वह भी ऐसा शास्त्रदान, जिससे असंख्यश्राचक असंख्यकालतक शुभोपयोग में प्रवृत्त होकर देवभक्ति करेंगे । इससे अर्जन होनेवाले पुण्यपुंजका श्रेय उक्त दातारों को अवश्य मिलेगा ही ।
आजकल वैसे ही धार्मिक क्रियात्रों में शिथिलता आगई है। लोग प्रमादी होते जा रहे हैं। धार्मिक कर्तव्यों को केवल नियम पूर्ति की दृष्टिसे पूरा करने की प्रवृत्ति बढ रही है। कुछ लोग तो देवपूजा, जिना - भिषेकादि नित्य षट्कर्मो को टालने के लिए उसमें अनेक प्रकारसे कुतर्क खडा कर देते हैं । "पंचामृताभिषेक शास्त्रोक्त नहीं है, स्त्रियां जिनाभिषेक नहीं कर सकती हैं, फलफूल नैवेद्य अपवित्र है, अतः अनिवेद्य हैं" इत्यादि स्वकपोल कल्पित तसे इन क्रियावोंसे स्वपरको वंचित करनेका प्रयत्न करते हैं । इन सब तर्कों का आगमसम्मत समाधान इस पुस्तक में किया गया है। उससे भव्य श्रावकों को यथेष्ट लाभ होगा।
सातिशय जिनेंद्रभक्ति के लिए यह पुस्तक सर्वतोपरि सहायक हो सकती है | यदि धर्मोंने उसका उपयोग कर आत्मविशुद्धिकी ओर अप्रसर होनेके लिए प्रयत्न किया तो लेखक, प्रकाशकका श्रम, व्यय, सभी सार्थक हैं ।
वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री
( विद्यावाचस्पति, व्याख्यान केसरी, समाजरत्न )
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