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पश Hoe
मनपा
चारित्र सुने तुम धन्यहो फिर देवेंद्र नरेंद्र नागेंद्र सबही आनन्दके भरे अपने परिवार बर्ग सहित सर्वज्ञ देव की स्तुति करते भये हेभगवान पुरुषोत्तम यह त्रैलोक्य सकल तुमकर शोभे है इसलिए तुम्हारा सकल भूपण नाम सत्यार्थ है तुम्हारी केवल दर्शन केवलज्ञान मई निजविभूति सर्व जगतकी विभूति को जीत कर शोभे है यह अनन्त चतुष्टय लक्ष्मी सर्व लोक का तिलक है यह जगतके जीव अनादि कालके वश होय रहे हैं महादुःख के सागर में पडे हैं तुम दीनों के नाथ दीनबंधुकरुणानिधान जीवोंको जिनराज पद दोहे केवलिन हम भव बनके मृग जन्म जरामरण रोग शोक वियोगव्याधि अनेक प्रकार के दुःख भोक्ता अशुभ कर्म रूप जाल में पड़े हैं इस लिए छूटना कठिन है सो तुम ही छुडाइवे समर्थहो हम को निज बोध देवो जिसकर कर्मका क्षय होय, हे नाथ यह विषय बासना रूप गहन बन उसमें हम निजपुरी का मार्ग भूल रहे हैं सो तुम जगतके दीपक हम को शिव पुरीका पंथ दरसावो और जे प्रात्म बोधरूप शांत रसके तिस.ये तिनको तुम तृषाके हरणहारे महा सरोवर हो और कर्म भर्म रूप बनक। भस्म करिबे को साक्षात् दावानलरूप हो और जेविकल्प जाल नानाप्रकारके वेई भए वरफ उसकर कंपायमान जगत् के जीव तिनकी शीत व्यथा इखि को तुम साक्षात् सूर्य्य हो. हे सर्वेश्वर सर्वभूतेश्वर जिनेश्वर तुम्हारी स्तुति करिबे को चार ज्ञान के धारक गणधर देव भी समर्थ नहीं तो और कौन हे प्रभो तुमको | हम बारम्बार नमस्कार करें हैं॥
१०६ एकसौ छठो पर्व संपूर्णम् ॥ ___ अथानन्तर केवली के बचन सुन संसार भ्रमण का जो महादुःख उसकर खेदखिन्न होय जिन दीक्षा । की है अभिलाषा जिसके ऐसा राम का सेनापति कृतान्त वक राम से कहता भया हे देव में इस संसार ।
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