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न के अर्थ सेवने योग्य है जो सम्यक दृष्टिजीव जिनशासनका श्रद्धानी परनिंदाका त्यागी अपनीअशुभक्रिया। HP का निंदक जगतके जावोसेन सधे ऐसे दुर्द्धरतपका धारक संयमका साधन हारा सोही दुर्लभ चारित्रमाग्वेि
को समर्थ होय है और जहां दया आदि समीचीन गुण नहीं वहां चारित्र नाही और चारित्र बिना संमारसे निवृति नहीं जहां दया क्षमा ज्ञान वैराग्य तप संयम नहीं वहां धर्म नहीं विषय कषायका त्याग सोई धर्म है शम कहिए समता भाव परमशांत दम कहिये मन इंद्रियोंका निरोध संवर कहिये नवीन कर्मका निगेध जहां ये नहीं वहां चारित्र नहीं जे पापी जीवहिंसा करे हैं झूठ बोले हैं चोरी करे हैं परस्त्री सेवन करे हैं। महा प्रारंभी हैं परिग्रही हैं तिनके धर्म नहीं, जे धर्मके निमित्त हिंसा करे हैं वे अर्धमी अधमगति के पात्र | हैं जो मूढ़ जिनदीचा लेकर प्रारंभ करे हैं सो पति नहीं यतिका धर्म प्रारंभ परिग्रहसे रहित है परिग्रह धारियों को मुक्ति नहीं जे हिंसा में धर्म जान षट काय के जीवोंकी हिंसा करे हैं वे पापी हैं हिंसा में धर्म नाही हिंसकों को इसभव परभव के सुख नहीं शिव कहिए मोक्ष नहीं जे मुखके अर्थ धर्मके अर्थ || जीवघात करे हैं सो वृथा हे जे माम क्षेत्रादिक में आसक्त हैं गाय भैंस राखे हैं मारे हैं बांधे हैं ताडेहें। दाहे हैं उनके वैराग्य कहां जे क्रिया बिक्रिया करे हैं रसोई परहेंडा आदि आरम्भ राखे हैं सुबर्णादिक | राखे हैं तिनको मुक्ति नहीं जिनदीचा निरारंभ है अतिदुर्लभ है जेजिनदीचा धारी जगत्का धंधाकरे हैवेदीर्घ संसारी हैं जे साधुहोय तेलादिकका मर्दन करे हैं स्नान करे हे शरीर का संस्कार करे हे पुष्पादिक
को सूंघे हैं सुगन्ध लगावे हे दीपक का उद्योत करे हैं धूप खेवे हैं सो साधु नहीं, मोक्षमार्ग से परांमुख | हैं अपनी बुद्धिकर जे कहे हैं हिंसा में दोष नहीं वे मूर्ख हैं तिनको शास्र का ज्ञान नहीं चारित्र नहीं
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