________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
पण
सूक्ष्म और तैजससे कार्म्मण मूक्ष्म है सो मनुष्य सौर तिथंचोंके तो । दरिकशरीर है और देवनागकियों के वाक ६० यक है और आहारक ऋद्धिधारी मुनियों के संदेह निवारिबेके अर्थ दसमद्वार से निकसे है सो केवल के निकट
जाय संदेह निवार पीछा आय दशमें द्वार में प्रवेशकरे हैं ये पांच प्रकारके शरीर कहे तिनमें एकैकाल एकजीव के कभी चारशरीरभीपाइयें तिनका भेदसुनों तीन तो सबही जीवोंकेपाइये नर और तिर्यंच के औदरिक और देव नारकीयों के वैक्रियक और तैजसकार्म्मण सबों के हैं तिन में कार्म्मण तो दृष्टिगोचर नहीं और तेजस किसी मुनि के प्रकट होय है उसके भेद दो हैं एक शुभ तेजस एक अशुभतैजस सो शुभतेजस तो लोकों को दुखी देख दाहिनी भुजा से निकस लोकों का दुख निवारे है और अशुभतैजस क्रोध के योगसे वाम Pyara fare प्रजा को भस्म करे है और मुनि को भी भस्म करे है और किसी सुनि के वैक्रिया ऋद्धि प्रकट होय है तब शरीर को सूक्ष्म तथा स्थूल करे है सो मुनि के चार शरीर भी किसी समय पाइयें एकै काल पांचो शरीर किसी जीव के भी न होंय ॥
अथानन्तरमध्यलोक में जंब द्वीप आदि श्रसंख्यात द्वीप और लवण समुद्रयादि श्रसंख्यात समुद्र हैं शुभ हैं नाम जिनके सो द्विगुण द्विगु विस्तार को लिये वलयाकार तिष्ठे हैं सब के मध्य जंबू है उसके मध्य सुमेरु पर्वत तिष्ठे है सौ लाख योजन ऊंचा है और जे द्वीपसमुद्र कहे तिन में जंबूद्वीप लाख याजन के विस्तार है और प्रदक्षिणा तिगुणी से कछू इक अधिक है और जंबू द्वीप में देवारण्य और भूतार दो वन हैं तिन में देवों के निवास हैं और षट् कुलाचल हैं पूर्व के समुद्र से पश्चिम के समुद्र तक लावें पड़े हैं तिनके नाम हिमवान् महाहिमवान निषेध नील रुकमी शिखरी, समुद्र के जल
For Private and Personal Use Only