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॥१४॥
निश्वास नाख क्षण एक विचार कर बोले, मैं सीता को शीलदोष रहित जानू हूं, वह उत्तम चित्त है। परन्तु लोकापवादकर घर से काढ़ा है अब कैसे बुलाऊं, इसलिये लोकों कोप्रतीति उपजायकर जानकी आबे तब हमारा उनका सहवास होय, अन्यथा कैसे होय इसलिये सब देशों के राजावों को बुलावो समस्त विद्याधर और भूमिगोचरी भावें सबों के देखते सीता दिव्य लेकर शुद्ध होय मेरे घर में प्रवेश करे जैसे शची इन्द्रके घर में प्रवेश करे तब सब ने कही जो आप अाज्ञा करोगे सोही होयगा तब सब देशों के राजा बुलाये सो वाल बृद्ध स्त्री परिवार सहित अयोध्या नगरी पाये जे सूर्य कोभी न देखें घरही में रहें वेनारी भी आई और लोकों की कहां बात जे वृद्ध बहुत बृतांत के जाननहारे देश में मुखिया सब दिशावों से आए कैयक तुरंगों पर चढ़े कैयक रथोंपर चढे तथा पालकी हाथी और अनेक प्रकार असवारियों पर चढ़े बड़ो विभति से आये विद्याधर आकाश के मार्ग होय विमान बैठे पाए और भूमिगोचरी भूमि के मार्ग प्राये मानों जगत् जंगम होयगया, रामकी आज्ञासे जे अधिकारीथे तिन्हों ने नगर के बाहिर लोगों के रहने के डेरे खडे काराए और महाविस्तीर्ण अनेक महिल बनाये तिनके दृहस्तंभ के ऊंचे मंडप उदार झरोखे सुन्दर जाली तिन में स्त्रिये भेली और पुरुष भेले भये पुरुष यथायोग्य बैठे दिव्य को देखने की है अभिलाषा जिनके जेते मनुष्य आए तिनकी सर्वभांति पाहुनगति राजद्वार के अधिकारियों ने करी, सबों को शय्या आसन भोजन तांबल वस्त्र सुगंध मालादिक समस्त सामग्री राज
द्वार से पहुंची सबों की स्थिरता करी और राम की प्राज्ञा से भामण्डल विभीषण हनुमान सुग्रीव विरा| धित रत्नजटी यह बडे बड़े राजा आकाश के मार्ग क्षणमात्र में पुण्डरीकपुर गए सो सब सेना नगर के
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