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| दृष्टि नहीं पड़े है सेनारूप समुद्र में नर नारी नाना प्रकार के प्राभरण पहिरे सुन्दर बस्रोंकर शोभायमान
महा रूपवान अति हर्षित दीखें इस भांति महा विभूति कर मण्डित सीता के पुत्र चले चले अयोध्या स. के देश में पाये, मानों स्वर्ग लोक में इन्द्र अाये जिस देशमें यव गेहूं चावलादि अनेक धान्य फल
रहे हैं और पोंडे सांठेयों के वाडे ठोर ठौर शोभ हैं पृथिवी अन्न जल तृणहर पूर्ण है और जहां नदियों तीर हमोंके समूह क्रीड़ा करे हैं और सरोवर कमलों कर शोभायमान हैं और पर्वत. नाना प्रकारके पुष्पों कर सुगन्ध होयरहे हैं और गीतोंकी ध्वनि ठौर ठौर होय रहीहै और गाय भैस बलधों के समूह विचर रहे हैं और गवालणी विलोवणा विलोवे हैं, और जहां नगरों सारिखे नजीक नजीक ग्राम हैं और नगर ऐसे शोभे हैं मानो सुर पुरही हैं महा तेजकर युक्त लवणांकुश देशकी शोभा देखते अति नीति सेवाये किसीको किसीही प्रकारका खेद न भया, हाथियोंके मद झरिख कर पंथ में रज दब गई कीच होय गया
और चंचल घोड़ोंके खुरों के घात कर पृथिवी जर्जरी होयगई । चले चले अयोध्या के समीप आये दूरसे सन्ध्याके बावरों के रंग समान अतिसुन्दर अयोध्या देख बज्रजंघ को पूया हे माम यह महा ज्योतिरूप कैसी नगरी है तब बनजंघ ने निश्चयकर कही हे देव यह अयोध्या नगरी है जिसके स्वर्णमई कोट उनकी यह ज्योति भासे है इस नगरीमें तुम्हारा पिता बलदेवस्वामी विराजे हैं जिसके लक्षमण और शत्रुघ्नभाई इस भांति बनजंघ ने कही और दोनोंकुमार शूरवीरता की कथाकरते सुख से श्राय पहुंचे कटक के
और अयोध्याके बीच सरयू नदी रही दोनों भाईयों के यह इच्छा कि शीघ्रही नदी उतर नगरी जैसे कोई मुनिशीघ्र ही मुक्त हुवाचाहें उसेमोक्षकी श्राशारूपनदी यथाख्यात होने न देय आशारूप नदीको
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