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पन
॥६१२॥
पुट विषे जल भरकर अभिषेक करावे है और बारम्बार सखीजनोंके मुख जयजयकार शब्द सुनकर जाग्रत होय है परिवार के लोक समम्त आज्ञारूप प्रवतें हैं कीड़ा विषे भी यहाज्ञाभंगन महमके सब अज्ञा कारी भए शीघही आज्ञा प्रमाण करे हैं तोभी सबों पर तेज करे है काहे से कि तेजस्वी पुत्र गर्भ विषे तिष्ठे हैं और मणियों के दर्पण निकट हैं तो भी खड़ग काढ खड्ग में मुख देखेहै और वीणावांसुरी मृदंगादि अनेक वादित्रों के नाद होय हैं सोनरुवें और धनु के चढ़ायवे की ध्वनि रुचे है और सिंहोंके पिंजरेदेख जिसके नेत्र प्रसन्न होंय और जिसका मस्तक जिनेंद्र टार और को न नमें ॥
.. अथानन्तर नव महीना पूर्णभये श्रावण शुदी पूर्णमासीके दिन श्रवण नक्षत्र के विपं वह मंगल । रूपिणी सर्वलक्षण पूर्ण शरदकी पूनोंके चंद्रमा समान बदन जिसका मुखसे पुत्र युगल जनताभई सो पुत्रोंके जन्म में पुंडरीकपुरकी सकल प्रजा अतिहर्षित भई मानों नगरी नाच उठी ढोल नगारे आदि अनेक प्रकार । के वादिन वाजने लगशंखोके शब्द भये राजा बज्रजंघ ने अतिउत्साह किया बहुत संपदा याचकों को। दई और एक का नाम अनंगलवण दूजे का नाम मदनांकुश ये यथार्थ नाम धरे फिर ये बालक बृद्धि को प्राप्त भए माता के हृदय को अति अानन्द के उपजावन हारे महाधीरशूरवीरता केअंकुर उपजे, सरसों के दाणे इनके रक्षा के निमित्त इनके मस्तक डारे सो ऐसे सोहते भए मानों प्रतापरूप अग्नि के कणही हैं जिनका शरीर ताये मुवर्ण समान अति देदीप्यमान सहजस्वभाव तेजकर अतिसोहता भया और जिन के नख दर्पणसमान भासते भए प्रथम बालअवस्था में अव्यक्त शब्द बोले सो सर्वलोक के मनको हरें और इनकी मंद मुलकनि महामनोग्य पुष्पों के विगसने समान लोकन के हृदय को मोहती भई और |
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