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कबूतरीके युगल विछोड़े हैं जिनके बाल नेत्र आधीचिरम समान और परस्पर जिन में प्रतिस्नेह और | कृष्णागुरु समान जिनका रंग अथवा श्याम घटा समान अथवा घूम समान घूसरे प्रारंभी है मुख से क्रीड़ा जिन्होंने और कंट में तिष्ठे है मनोहर शब्द जिनके सो में पापिनी जुदे की ये अथवा भले स्थानकसे बुर स्थानक में मेले अथवा बांधे मारे ताके पापकर असंभाव्य दुःख मुझे प्राप्त भया अथवा वसंत के समय फले वृक्ष तिन में केलि करते कोकिल कोकिली के युगल महामिष्ट शब्द के करन हारे परस्पर भिन्न भिन्न कीये, उस का यह फल है अथवा ज्ञानी जीवों के बंदिवे योग्य महाव्रती जितेन्द्रिय महामुनि तिन की निन्दा करी, अथवा पूजा दान में विघ्न कीया, और परोपकार में अन्तराय किए हिसादिक पाप किए, ग्रामदाह, बनदाह स्त्री बोलक पशुहत्यादि पाप कीए तिन के यह फल हैं अन छाना पानी पिया रात्री को भोजन किया बीघा अन्न भषा अभक्ष्य वस्तु का भक्षण कीया न करिबे योग्य काम किए तिनके यह फल हैं मैं बलभद्र की पटराणी स्वर्ग समान महल की निवासिनी हजारां सहेली मेरी सेवा की करन हारी सो अब पाप के उदय से निर्जन बन में दुख के सागर में वी कैसे तिष्ठ । रत्नों के मन्दिर में महा रमणीक वस्त्र तिनकर शोभित सुन्दर सेजपर शयन करण हारी मैं कहां पड़ी हूं सर्व सामग्री कर पूर्ण महा रमणीक महल में रहणहारी में अब कैसे अकेली बन का निवास करूंगी महा मनोहर बीए बांसुरी मृदंगादिक के मधुर स्वर तिनकर सुख निद्रा की लेन हारी मैं कैसे भयंकर शब्द कर भयानक बन में अकेली तिष्ठ्गी, राम देव की पटराणी अपयश रूपी दावानल कर जरी महा दुःखिनी एकाकी नीपापिनी कष्टका कारण जो यह बन जहां अनेक जाति के कीट
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