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कहे हैं सो सांच है दुष्ट पुरुषके घरमें तिष्ठी सीता में क्यों लाया और सीता से मेरा अतिम जिसे क्षण । पुराण | मात्र न देख तो विरहकर अाकुलता लहूं और वह पतित्रता मोसे अनुरक्त उसे कैसे तज्जो सदा मेरे
नेत्र और उरमें वसे महागुणवती निर्दोष सीता सती उसे कैसे तजू अथवा स्त्रियों के चित्त की चेष्टा कौन जाने जिनमें सब दोषों का नायक मन्मथ वसे है धिक्कार स्त्री के जन्मको सर्वदोषोंकी खान आताप का कारण निर्मल कुल में उपजे पुरुषों को कर्दम समान मलिनता का कारण है, और जैसे कीच में फसा मनुष्य तथा पशु निकस न सके तैसे स्त्री के रागरूप पंकमें फसो प्राणी निकस न सके, यह स्त्री समस्त बलका नाश करणहारी है और रागका अाश्रय है और बुद्धि को भ्रष्ट करे है और आपटवे को खाई समान है निर्वाण सुखकी विघ्न करण हारी ज्ञान की उत्पत्ति को निवारण हारी भव भ्रमण का कारण है भस्म से दवी अग्यि समान दाहक है डांभ की सूई समान तीक्षण है देखबे मात्र मनोग्य परन्तु अपवाद का कारण ऐसी सीता उसे मैं दुःख दूर करके निमित्त तजु जैसे सर्प कांचिली कोतजे फिर चितवे । हैं जिसकर मेरो हृदय तीव्रस्नेहके बंधनकर वशीभूत सो कैसे तजीजाय, यद्यपिमें स्थिरहूं तथापि यहजानकी निकटवर्तिनी अग्नि कीज्वाला समान मेरेमन को प्राताप उपजावे है और यह दूर रही भी मेरे मन को मोह - उपजावे जैसे चन्द्ररेखा दरही से कुमुदनी को विकसित करे, एक ओर लोकापवाद का भय और एक ओर सीता के दुर्निवार स्नेह का भय और राग कर विकल्प के सागर में पड़ा हूं और सीता सर्वथा प्रकार देवांगना । से भी श्रेष्ठ महापतिव्रता सतीशीलरूपिणी मोसे सदा एकचित उसे कैसे तजं और जोन तजं तो अपकीर्ति प्रगट होय है इस पृथिवी में मोसमान और दीन नहीं स्नेह और अपवाद का भय उसविषे लगा है |
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