________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
NEXEI
श्रेष्ठ गणोंकर युक्त भव्यजीव सुनों जिससे शीघ ही सूर्य से अधिक तेज केधारक होवो ॥ इति सतासीवां पर्व - अथानंतर भरत के साथ जे राजा महाधीर वीर अपने शरीर विष भी जिनका अनुराग नहीं घर से निकस जैनेश्वरी दिक्षा धर दुर्लभ वस्तु को प्राप्त भये तिनमें कैयकन के नाम कहिये हैं हे श्रेणिक त सुन सिद्धार्थ, रतिवर्धन, मेघरथ, जांबनंद.शल्प, शशांक, निरसनंदन, नंद, आनंद, सुमति, सदाश्रय, महावुद्धि सूर्य, इंद्र ध्वज, जनवल्लभ, श्रुतधर, सुचंद्र, पृथिवीधर, अलक सुमति, अक्रोध,कुण्डुर, सत्यवाहन हरिवामित्र धर्ममित्र, पूर्णचंद्र प्रभाकर, नघोष, सुनंद, शांति,प्रियधर्मा इत्यादि एक हजारसेअधिक राजा वैराग्य धारतेभये विशुद्धकुल विषे उपजे सदा पाचार विषे तत्पर पृथिवी विषे प्रसिद्ध है शुभ चेष्टा जिनकी ये महाभाग्य हाथी घोड़े रथ पयादे स्वर्ण रत्न रणवास सर्वतज कर पंच महाव्रत धारते भये, राज्य को तृणवत तजा महाशांत नानाप्रकार योगीश्वरऋधिके धारक भए आत्मध्यान के ध्याता कैयक तो मोक्ष गए कैयक अहमिद्र भए कैयक उत्कृष्ट देव भए भरत चक्रवर्ती सारिखे दशरथ के पुत्र भरत तिनको घर से निकसे पीछे लक्ष्मण तिनके गुण चितार चितार अतिशोकवंत भया अपना राज्यशन्य गिनता भया शोक कर ब्याकुल है चित्त जिम्मका, अति विषादरूप आंसू डारता भया दीर्घ निश्वास नाखतो भया नील कमल समान है कांति जिस की सो कुमलाय गया, विराधित की भुजावों पर हाथ धरै उसके सहारे बैठा मंद मंद बचन । कहे, वे भरत महाराज गुण हो हैं आभूषण जाकै सो कहां गए जिन तरुण अवस्था में शरीर से प्रीति । छाडी इन्द्र समान राज और हम सब उनके सेवक वे रघुवंश के तिलक लमस्त विभूति तजकर मोक्ष के अर्थीमहादुद्धर मुनिका धर्म धारते भए शरीरतो अतिकोमल कैसे परीषह सहेंगे धन्य वे और श्रीराम महा ।
For Private and Personal Use Only