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पुरागा
पद्म ग्रहा जाय तो भूमिगोचरियों की क्या बात, जाकी बास से सिंहादिक निवास तज भाग जावें ऐसा ।
प्रबल गजराज गिर के वन विषे नाना प्रकार पल्लव का आहार करता मानसरोवर विषे क्रीडा करता अनेक गजों सहित विचरे कभी कैलाश विषे विलास करे कभी गंगा के मनोहर द्रहों विषे क्रीडा करे
और अनेक बन गिरि नदी सरोवरों विषे सुन्दर क्रीडा करे और हजारों हथिनिवों सहित रमे, अनेक हाथियों के समूह का शिरोमणि यथेष्ट विचारतो ऐसा सोहे जैसा पक्षियोंके समूह कर गरुड | सोहे मेघ समानगर्जता मद के नीझरने तिनके झरने को पर्वत सो एक दिन लंकेश्वर ने देखा, सो विद्या के || पराक्रम कर महाउग्र उसने यह नीठि नीठि वश किया इसका त्रैलोक्यमंडन नाम धरो सुन्दर हैं लक्षण जिसके जैसे स्वर्ग विषे चिरकाल अनेक अप्सराओं सहित क्रीडा करी तैसे हाथियों की पर्याय में हजारों हथिनियों से क्रीडा करता भया यह कथा देशभूषण केवली राम लक्ष्मण से कहेहैं कि ये जीव सर्व योनि विषे रति मान लेय है निश्चय विचारिये तो सर्व ही गति दुःख रूप हैं अभिराम को जीव भरत और मृदुमति का जीव गज सूर्योदय चन्द्रोदय के जन्म से लेकर अनेक भव के मिलापी हैं इसलिये भरत को देख पूर्व भव चितार गज उमशांतचित्त भया और भरत भोगों से पराङ्मुख दूर आया है मोह जिसका अब मुनिपद लिया चाहे है इस ही भव से निर्वाण प्राप्त होवेंगे फिर भव न घरेंगे श्री ऋषभदेव के समय यह दोनों सूर्योदय चन्द्रदय नामा भाई थे, मारीच के भरमाए मिथ्यातत्व का सेवन कर बहुत काल संसार वषे भ्रमण कीया, बस स्थावर योनि में भ्रमे चन्द्रोदय का जीव कैयक भव पीछे राजा कुलंकर फिर कैयक भव पैछे रमण ब्राह्मण फिर कैयक भव घर, समाधि मरण करणहारा मृग भया, फिर स्वर्ग
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