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1८३८॥
| से कहा कि यह सर्वथा जिन दीचा धग्गा सुनकर पिता चिन्तावान भया पिताका पुत्रसे अधिक प्रेम इस पुराण को घरहीमें गवे बाहिर निकमने न देय सब सामग्री इसके घरमें विद्यमान यह भूषण सुंदर स्त्रियों शोभाय
मान वस्त्र आहार नाना प्रकारके सुगन्धादि विलेपन कर घरमें सुखसे रहें इसको सूर्य के उदय अस्त की गम्य नहीं इसके गिताने सैकड़ों मनोरथकर यह पुत्र आया और एकही पुत्रसो पूर्वजन्मके स्नेहसे पिता के प्राणमे भी प्यारा पितातो विनोदका जीव और पुत्र रमणका जीव भाग दोनों भाई थे सो इस जन्म में पिता पुत्र भये संसारकी विचित्राति है ये प्राणी नटवत नृत्य करे हैं संसारका चरित्र स्वप्नके राज्य । समान असारहै एक समय यहधनदत्तका पुत्र भूषण प्रभात समय दुदुंभी शब्द मुन आकाश में देवोंका। आगमन देख प्रति बुद्ध भया यह स्वभावही से कोमलचित्त धर्म के प्राचार में तत्पर महाहर्ष का भरा। दोनों हाथ जोड़ नमस्कार करता, श्रीधर केवलीकी बन्दना को शीघ्रही जाय था सो सिवाण से उतर । ते सर्पने डसा देह तज महेन्द्र नाम जो चौथा स्वर्ग वहां देव भया वहां से चयकर पहकर हीप विषे चन्द्रादित्य नामा नगर वहां राजाप्रकाशयश उसके राणी माधवी उसके जगद्युतिनामा पुत्र भया योवन के उदयमें राज्यलक्ष्मी पाई परंतु संसारसे अतिउदास राज विषे चित्त नहीं सो इसके वृद्ध मन्त्रियों ने । कही यह राज्य तुम्हारे कुलक्रमसे चला आवे है सो पालो तुम्हारे राज्य से प्रजा मुख रूप होयगी सो! मंत्रियों के हठसे यह राज्य करे राजा विषे तिष्ठता यह साधूवों की सेवा करे सो मुनि दानके प्रभावसे । देवकुरु भोग भूमि गया वहांसे ईशान नाम दूजास्वर्ग वहांदेव भया चार सागर दोयपल्ल देवलोक के सुख भोगे देवांगनावों कर मंडित नाना प्रकारके भोग भोग वहां से चयासो जम्बू द्वीप के पश्चिम
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