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पद्म पुरा ne १६
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स्मरण कराया तुम समान हमारे और वल्लभ नहीं वही मनुष्य महा पुण्यवान् हैं जो माता के विनय में तिष्ठे हैं दास भए माता की सेवा करें जे माता का उपकार विस्मरण करे हैं वे महा कृतघ्न हैं इस भांति माता के स्नेह कर व्याकुल भया है चित्त जिनका दोनों भाई नारदकी प्रति प्रशंसा करते भए ।
अथानन्तर श्रीराम लक्ष्मण ने उसी समय यति विभ्रम चित्त होय विभीषण को बुलाया और भामंडल सुग्रीवादि पास बैठ हैं दोनों भाई विभीषण से कहते भए हे राजन् इन्द्र के भवन समान तेरा भवन वहाँ हम दिन जाते न जाने अब हमारे माता के दर्शन की प्रति बांछा है हमारे अंग अति ताप रूप हैं सो माता के दर्शन रूप अमृतकर शांतता को प्राप्त होवें अब अयोध्या नगरी के देखने को हमारा मन | प्रवरता है वह अयोध्या भी हमारी दूजी माता है तब विभीषण कहता भया हे स्वामिन जो आज्ञा करोगे सो ही होयगा अवार ही अयोध्या को दूत पठावें जो तुम्हारी शुभवार्ता मातावों को कहें और तुम्हारे
गम की वार्ता कहें जो मातावों के सुख होय और तुमकृपाकर षोडश दिन यहांही विराजो हे शरणागत प्रतिपाल मोसे कृपाकरो ऐसा कह अपना मस्तकराम के चरण तले धरा तब राम लक्ष्मणने प्रमाण करी ॥
अथानन्तर भले भले विद्याधर अयोध्याको पठाए सो दोनों माता महिलपर चढ़ी दक्षिण दिशा की ओर देख रही थीं सो दूरसे विद्याधरों को देख कौशल्या सुमित्रा से कहती भई हे सुमित्रे देख दोय यह विद्याधर पवनके प्रेरे मेघ तुल्य शीघ्र यावे हैं सो हे श्रावके अवश्य कल्याण की वार्ता कहेंगे यह दोनों भाइयों के भेजे यावे हैं तब सुमित्राने कही मजो कहो हो सो ही होय यह वार्ता दोनों मातावों में होय है तब ही विद्याधर पुष्पों की वर्षा करते आकाश से उतरे प्रतिहर्ष के भरे भरतके निकट आए राजा भरत ति
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