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वचन सुन राजा श्रीवर्धित और पोदनापुरकेबहुत लोकशांतचित्त होय जिनधर्मका अाराधन करतेभए यह मय मुनिका महात्म्य जे चित्तलगाय पढ़ें सुनें तिनको वैरियोंकी पीडा न होय सिंहव्याघादि न हतें सर्पादिन डसें __ अथानन्तर लक्ष्मणके बड़े भाई श्रीरामचन्द्र स्वर्गलोक समान लक्ष्मी को मध्यलोक में भोगते भये चन्द्र सूर्य समानहै कांति जिनकी और इनकी माता कौशल्या भर्तार और पुत्रके वियोगरूप अग्नि की ज्वाला कर शोकको प्राप्त भया है शरीर जिसका महिल के सातवें खण बैठी सखियों कर मंडित अतिउदास आंसुवों कर पूर्ण हैं नेत्र जिसके जैसे गायको बच्छे का वियोग होय और वह व्याकुल होय उस समान पुत्र के स्नेह में तत्पर तीव्र शोक के सागर में मग्न दशों दिशा की ओरदेखे महिलके शिखर में तिष्ठता जो काग उसे कहे है हे बायस मेरा पुत्र राम श्रावे तो तुझे खीरका भोजन दू ऐसे वचन कहकर विलाप करे अश्रुपात कर कियाहै चातुर्यमास्य जिसने हाय वत्सतू कहांगया में तुझे निरन्तर सुख से लडाया था तेरे विदेश भ्रमणकी प्रीति कहां से उपजी कहां पल्लव समान तेरे चरण कोमल कठोर पंथ में पीड़ा न पावे महा गहन बन विषे कौन वृक्ष के तले विश्राम करता होयगा में मन्द भागिनी अत्यन्त दुःखी मुझे तज कर तू भाई लक्षमण सहित किस दिशाको गया इसभांति माता विलाप करे उस समय नारद ऋषि आकाश के मार्गमें आए पृथिवीमें प्रसिद्ध सदो अढाई द्वीप में भ्रमतेही रहें सिर पर जाशुक्ल वस्त्र पहिरे उसको समीप पावताजान कौशल्याने उठकर सन्मुख जाय नारदका आदरसहित सिंहासन विछाय सन्मान किया तब नारद उसे अश्रुपात सहित शोकवन्ती देख पूछतेभएहे कल्याणरूपिणी | तुम ऐसी दुःख रूप क्यों तुमको दुःखका कारण क्या सुकौशल महाराज की पुत्री, लोक विषे प्रसिद्ध,
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