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को जीत कर लिया और व्यापपुर का राजा शीला का पिता मरण को प्राप्त भया उसका पुत्र सिंहचन्द्र । पुराण | शत्रुवोंने दवाया सो सुरंग के मार्ग होय अपनी राणी को ले निकसा राज्यभ्रष्ट भया पोदनापुर विषे अपनी
बहिन का निवास जान तंबोली के लार पानों की झोली सिर परधरस्त्री सहित पोदनपुर के समीप पाया रात्रि को पोदनपुर के वन में रहा, इस की स्त्री मर्प ने डसी तब यह उसे कांधे धर जहां मय महामुनि विराजे थे वे बज्र के थंभ समान महानिश्चल कायोत्सर्ग धरे अनेक ऋद्धि के धारक तिनको भी सर्व
औषधी ऋद्धि उपजी थी सो तिन के चरणारविंद के समाप सिंहचन्द्र ने अपनी राणीडारीसो तिनके ऋद्धि के प्रभाव कर राणी निर्विष भई स्त्रीसहित मुनि के समीप तिष्ठे था उस मुनि के दर्शन विनयदत्त नाम श्रावक श्राया उसे सिंहचन्द्र मिला और अपना सब बृतान्त कहा तब उसने जाय कर पोदनापुरके राजा श्रीवर्धित को कहा जो तुम्हारी स्त्री का भाई सिंहनन्द्र पाया है तब वह शत्रु जान युद्ध को उद्यमी भया तब विनयदत्तने यथावत् बृतांत कहा जो तुम्हारे शरण आया है, तब उसे बहुत प्रीतिउपजी औरमहाविभूति से सिंहचन्द्र के सन्मुख आया दोनों मिले अति हर्ष उपजा फिर श्रीवर्धित मय मुनि को पछता भयो ह भगवन् में मेरे और अपने स्वजनों के पूर्व भव सुना चाह हूं तव मुनि कहते भए एक शोभपुर नामानगर वहां भद्राचार्य दिगंवरने चीमासे में निवास किया सो अमलनामा नगर का राजा निरंतर प्राचाय के दर्शनको प्रावे सो एक दिवस एक कोटिनी स्त्री उसकी दुर्गंध आई सो राजा पांवपयादाही भाग अपने घर गया उसकी दुर्गंध सह न सका और वह कोढणीने चैत्यालय दर्शन कर भद्राचार्य के समीप श्राविका के व्रतधारे, समाधि मरण कर देवलोक गई वहा से चयकर तेरी स्त्री शीला भई और वह राजा अमल
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