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पा
॥११॥
राजाओं की बात तो दूरही रही स्वर्ग में इन्द्र महा विभव युक्त हैं वे भी क्षण में विलाय जाय हैं । और जे भगवान तीर्थकर तीनों लोक के अानन्द करण हारे हैं वे भी श्रायुके अन्त होनेपर शरीर को तज निर्वाण पधारे हैं जैसे पक्षी वृक्ष पर रात्रिको आय बसे हैं प्रभात अनेक दिशाको गमन करे हैं तैसे यह प्राणी कुटम्ब रूपी वृक्ष में प्राय बसे हैं स्थिति पूरी कर अपने कर्म बश चतुर्गति में गमन करे हैं सबसे बलवान महाबली यह काल है जिसने बडे २ बलवान निर्बल किये अहो बड़ा आश्चर्य है बड़े पुरुषों का विनाश देखकर हमारा हृदय नहीं फट जाय है जीवोंके शरीर सम्पदा और और इष्टका संयोग सर्व इन्द्र धनुष, वा स्वप्न, वा विजली. वा झागा, वा बुदबुदा समान जानना इस जगत में असा कोई नहीं जो कालसे बचे एक सिद्धही अविनाशी हैं और जो पुरुष पहाड़ को हाथसे चूर्ण कर डॉर और समुद्रको शोष जावें वे भी कालके बदन में प्राप्त होय हैं मृत्यु अलंघ्य है यह त्रैलोक्व मृत्युके वश है केवल महा मुनि ही जिन धर्मके प्रसाद से मृत्यु को जीते है जैसे अनेक राजा काल षश भये तैसे हमभी काल बश होंबेगे तीन लोक का यही मार्ग है ऐसा जान कर ज्ञानी पुरुष शोक न करें शोक संसार का कारण है इस भांति वृद्ध पुरुषने कही और इस भांति सर्व सभा के लोगों ने कही उसी समय चक्रवर्ती ने दोऊ बालक देखे तब मनमें बिचारी कि सदा ये साठ हजार भेले होय मेरे पास श्रावते थे नमस्कार करते थे और अाज ये दोनों ही दीन बदन दीखे हैं इस लिये जानियेहै कि और सब काल वश भए और ये सब राजा मुझे भन्योक्ति कर समझाये हैं मेरा दुःख देखनेको असमर्थ है ऐसा जान राना शोक रूप सर्पका उसा हुआ भी प्राणों
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