________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
पद्म पुराण
19531
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मानों दुःख के अंकुरे हैं और कैयक संसारके भोगों से विरक्त होय मनविषे जिनदीक्षा को उद्यमकरते भए । अथानन्तर पिले पहिर महासंघ सहित अनन्तवीर्य नामा मुनि लंका के कुसुमायुध नामा विषे छप्पन हजार मुनि सहित आए जैसे तारावों कर मंडित चन्द्रमा सोहे तैसे मुनियों कर मंडित सोहते भए, जो ये मुनि रावण के जीक्ते धावते तो रावण मारान जाता लक्षमण के औररावण के विशेष प्रीति होती जहां ऋद्धिधारी मुनि तिष्ठे वहां सर्व मंगल होवें चौरकेवली विराजेवहां चारों ही दशाओं में दोय सा योजन पृथिवी स्वर्ग तुल्य निरुपद्रव होय और जीवन के बैरभाव मिट जावे जैसे आकाश विषे अमूर्तत्व अवकाशप्रदानता निर्लेपता और पवन में सवोर्यता, निसंगता, अग्नि में उष्णता, जल में निर्मलता पृथिवी में सहनशीलता तैसेसुते स्वभाव महामुनि के लोक को आनन्द दायकता होय है सो अनेक अदभुत गुणों केधारक महामुनि तिन सहित स्वामी विराजे, गौतमस्वामी कहे हैं, हे श्रेणिक तिनके गुण कौन वर्णन कर सके जैसे स्वर्ण का कुम्भ अमृत का भरा अति सोहे तैसे महामुनि अनेक ऋद्धि के भरे सोहते भए निर्जंतु स्थानक वहां एक शिला उसऊपर शुक्ल ध्यान घर तिष्ठे सो उसही रात्रि विषे केवलज्ञान उपजा जिनके परम अद्भुत गुण वर्णन किए पापों का नाश होय तत्र भुवनवासी असुर कुमार नागकुमार गरुडकुमार विद्युतकुमार ग्नि कुमार पवनकुमार मेघकुमार दिकुमार दीपकुमार उदधिकुमार ये दश प्रकार तथा
प्रकार तिर किन्नर किंपुरुष महोरग गंधर्व यक्ष राक्षस भूत पिशाच, तथा पंच प्रकार ज्योतिषी सूर्य ग्रह तारा नक्षत्र और सोलह स्वर्ग के सर्वही स्वर्गबासी ये चतुरनिकाय के देव सोधर्म इन्द्रादिक सहित Eight खंडीप के विषे श्रीतीर्थंकर देव का जन्म भया था सो मुमेरु पर्वत विषे क्षीर सागर के जल कर
For Private and Personal Use Only