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पुराण ॥७३॥
पूर्वकर्म के प्रभावकर प्रमोदको धरते जे प्राणी तिनके अवश्य कष्टकी प्राप्ति होय है उसका शोक कहां भार तुम्हारा भाई सदा जगतके हितविषे सावधान परम प्रीति का भाजन समाधान रूप बुद्धि जिसकी राजकार्य विषे प्रवीण प्रजाका पालक सर्वशास्त्रोके अर्थकर धोयाहै चित्त जिसने सो बलवान मोह कर दारुण अवस्थाको प्राप्तभया और विनाशका प्राप्तभया जब जीवोंका विनाश काल आवे तबबुद्धि अज्ञान रूप होय जायहै ऐसे शुभ वचन श्रीराम ने कहे फिरभामंडल अति माधूर्यताको धरे वचन कहते भये हे विभीषण महाराज तुम्हारा बाई रावण महाउदार चित्त भयंकर रणविषे युद्ध करता संता वीर मरणकर परलोक को प्राप्तभया जिसका नाम न गया उसका कछु ही न गया वे धन्य हैं जिन सुभटता कर प्राण तजे वे महापराक्रमके धारक वीर तिनका कहा शोक एक राजाअरिंदमकी कथा सुनो॥अक्षयकुमार नामा नगर वहां राजा अरिंदम जिसके महाविभूति सो एक दिन काहू तरफ से अपने मंदिर शीघ्रगामी घोडे चढ़ाअकस्मात अाया सो रागी को श्रृंगार रूप देख और महल की अत्यन्त शोभादेख राणी को पूछा तुमइयाग श्रागम कैसे जाना तब राणीने कही कीर्तिधरनामा मुनि अवधिज्ञानी अाज अाहार को आए थेतिनको मैंने पूछा राजा कब श्रावेंगे सो उन्होंने कही राजा श्राजअचानक घारगे यह बात सुन राजा मुनि गया और इर्षाकर पूछता भया हे मुनि तुमको ज्ञान है तो कहो मेरे चित्तमें क्या है तब मुनिने कही तेरे चित्तमें यह है कि मैं कब मरूंगा सो तू अाजसे सातमें दिन वळपात से मरेगा और विष्टामें कीट होयगा, यह मुयिके वचन मुन राजा अरिंदम घर जाय अपने पुत्र प्रीत्यंकर को कहता भया मैं मर कर विष्टाके घर में स्थूल कोट होगा ऐसा मेरा रंगरूप होयगा सो तू तत्काल मार डारियो ये बचन
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