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पध
करें हैं और भव्य जीव धर्मको पाय सिद्धास्थानकको प्राप्त होयह अब हमको माक्ष गये पीछे बाईस तीर्य कर और होंगे, तीन लोक में उद्योत करणे वाले वे सर्व मुझ सारिष कांति वीर्य विभूति के धनी वैलो क्यपूज्य ज्ञान दर्शन रूप होंगे, तिनमें तीन तीर्थकर १ शान्ति २ कुंथ३ अर चक्रवर्ती पदके भी धारक होवेंगे। सो चौबीसों के नाम सुन ऋषभ १, अजित २,संभव ३, अभिनन्दन ४, सुमति ५, पद्मप्रभ६ सुपार्श्व ७, चन्द्रप्रभ ८, पुष्पदन्त , शीतल १०, सांस ११, वासपूज्य १२, विमल १३, अनन्त १४, धर्म १५, शान्ति १६, कुंथु १७, अर १८ मल्बि १६, मुनि सुत्रत २०, नमि २१, नेमि २२, पार्श्वनाथ २३, महावीर २४, यह सर्वही देवाघि देव जिम मार्ग के धुरन्धर होवेंगे, और सर्व के गर्भावतारमें रत्नों की वर्षा होगी सर्व के जन्म कल्यानक सुमेरु पर्वतफर क्षीर सागर के जल से होगे उपमा रहितहें तेज रूप सुख और बल जिनके ऐसे सर्वही कर्म शत्रु के नाश करण हारे होवेंगे और महावीर स्वामी रूपी सूर्य के अस्त भए पीछे पाखण्ड रूप अज्ञानी चमत्कार करेंगे वह पाखण्डी संसार रूप कूपमें आप पडेंग
और औरों को गैरेंगे चक्रवर्तियों में प्रथमतो भरत भए दूसरा तू सगर भया, और तीसरा, मघवा चौथा सनत्कुमार और पांचवां शान्ति छठा कुथु सातवां अर आठवां सुभूम नवा महापद्मदशवां हरिषेण ग्यारवां जयसेन बारवां ब्रह्मदत्त यह बारह चक्रवत्तों और वासुदेव नव औरप्रेतिवासुदेव वलभद्र नब होवेंगे इनका धर्ममें सावधानचित्त होगा यह अवसर्पणीक महापुरुष क इसीभान्तिउत्सर्पणी में भरत ऐरावत में जानने इस
भांति महापुरुषोंकी विभूति और कालकी प्रवृति और कर्मके वशसे संसारका भ्रमण और कर्म रहितोंको || मुक्ति का निरुपमसुख यह सर्वकथन मेघवाइनने सुना यह विचक्षण चित्त में विचारता भया कि अफसोस! |
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