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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५८ - पन सामंत सों युद्ध करे हैं वे मन विषे यह निश्चय करे हैं हम मरेंगे अथवा उनको मारेंगे हे नाथ तुम कौन अर्थ मरो हो पराई नारीकेनारके अर्थक्यामरणा इस मरिणे में यशनहीं और उनको मारो तुम्हारीजीत होय तोभों यश नहीं क्षत्री गरे हैं यश के अर्थ इसलिये सीता सम्बन्धी हठ को छोड़ो और जो बड़े बड़े व्रत हैं तिन की महिमा तो क्या कहनी एक यह परदारा परित्याग ही पुरुष के होय तो दोनों जन्म सुधरें शीलवन्त पुरुष भवसागर तिरें जो सर्वथा स्त्री का त्याग करेंसोतो अतिश्रेष्ठही हैं काजल समान कालिमाकी उपजावन । हारी यह परनारी तिनविषे जे लोलुपी उनविषे मेरु समान गुण होंय तो भी तृष्ण समान लघु होय जाय जो । चक्रर्वी का पुत्र होय और देव जिसकी पत्नहोय और परस्त्रा के संगरूप कीत्रविषेड्वे तो महा अपयशको प्राप्त होय जो महमति परस्त्री से रति करे है सो पापीग्राशीविष भुजंगनी से रमे है, तुम्हारा कुल अत्यन्त निर्मल सोअपयशकर मलिन मतकरो, दुर्बुद्धितजोजेमा बलवान्थे, औरदूसरोंको निर्वलजानते थेअर्ककीर्ति प्रशन घोषादिक अनेकनाशको प्राप्त हुए सोहे सुमुख तुम कहा नसुने ये बचन मन्दोदरी के सुनरावण कमल नयन कारी घटा समान है वर्णजिसका मलियागिरचन्दन कर लिप्त मन्दोदरीसे कहता भया हे कांते तू काहे को कायर भई मैं अर्ककीर्ति नहीं जो जय कुमार से हारा और में अशनघोष नहीं जो अमिततेज से हारा और और भी नहीं में दशमुख हूं तू काहेको कायरताकी बातकहे है में शत्रुरूपबृत्तोंके समूहको दोवानल रूपहूं सीता कदाचित् नदूं, हे मन्दमानसेतू भयमत करे, इस कथा कर तुझे क्या, तोको सीता की रक्षा सौंपी है सो रक्षा झली भांतिकर और जो रक्षा करिव को समर्थनहींतो शीघ मोहि सौंप देवो, तबमन्दोदरी कहती भई तुम उससे रति सुख बांछो हो इसलिये यह कहो हो मोहि सौंप देवो सोयहनिर्लज्जता की बात For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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