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॥७२॥
___पद्म होय है, में रावण जगत् प्रसिद्ध क्या तुमने न सुना जिस ने इन्द्रसे राजा बन्दी गृह में किए जैसे कोई स्रियों
को और सामान्यलोकोंको पकडै तैसे इन्द्र पकड़ाऔरजिसकी आज्ञासुर असुरोंकरन रोकी जाय पाताल में न जल में न आकाश विषेत्राज्ञा को कोई न रोक सके नानाप्रकारके अनेक युद्धों का जीतनहारा चीर लक्ष्मी जाको बरे ऐमा में सो तुमको सागरांत पृथिवी विद्याधरों से मण्डित दृहूं और लंकाके दोयभागकर बांटदूहूं ।
भावार्य। समस्त राज्य और प्राधीलंका दृहूं तुममेरा भाई और दोनोंपुत्र मोपे पठावो और साता मुझे देवो जिस से सब कुशलहोय और जो तुम यों न करोगे तोजो मेरे पुत्र भाई वन्धमें हैं तिनकोतो बलात्कार छुटाय लूंगा और तुम को कुशल नहीं, तब राम बोले मुझे राज्य से प्रयोजन नहीं और और स्त्रियों सेप्रयोजन नहीं सीता हमारे पगवो हम तुम्हारे दोनों पुत्र और भाई को पठावें और तुम्हारी लंका तुम्हार ही रहो और समस्त राज तुमही करो में सीता सहित दुष्टजीवों से संयुक्त जो बन उस में सुख से विचरूंगा हे दूत तू लंका के धनो सजाय कहो इसही बात में तुम्हरा कल्याण है,और भान्ति नहीं ऐसे श्राराम केसर्व पूज्य वचन मुख साता कर संयुक्त तिन को सुनकर दूत कहता भया हे नृपति तुम राज काज में समझते नहीं में तुम को फिर कल्याण की बात कहूं हूं तुम निर्भय होय समुद्र उलंघ पाए हो सो नीके | न करी और यह जानकी की आशा तुम को भलो नहीं यदि लंकेश्वर कोप भया तव जानकी की क्या बात तुम्हारा जीवना भी कठिन है और राजनीति में ऐसा कहा है जे बुद्धिमान् हैं तिन को निरन्तर अपने शरीर की रक्षाकरनी स्त्री और धन इन पर दृष्टि न धरनी और जोगरुडेन्द्र ने सिंहवाहन गरुड़वाहन तुम पे भेजे तो क्या और तुम छलछिद्रकर मेरे पुत्र और सहोदर बांधे तोक्यो जोलग में जीवं हूं तो लगइनबातोंका गर्व तुमको.
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