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पद्म भंग करे तब रावण अपनी सेनाको व्याकुल देख श्राप युद्ध करनेको उद्यमी भया तब कुम्भकर्ण रावणको । ६नमस्कारकर श्राप युद्धको चलो तब इसे महाप्रबल योषा रणमें अग्रगामी जान सुषेण अादि सब ही
बानरवंशी व्याकुल भए जब वे चंद्ररश्मि जयस्कंध चन्द्राहु रतिवर्धन अंगअंगद सम्मेद कुमुद कशमंडल वालचंड तरंग सार रत्नजटी जय वेलक्षिपीवसंत कोलाहल इत्यादि अनेकयोधा रामके पक्षी कुम्भकर्ण से युद्ध करने लगे सो कुम्भकर्ण सब को अपनी निद्रानामा विद्या से निद्राके वश किए जैसे दर्शना वणीय कर्म दर्शनके प्रकाश को रोके तैसे कुम्भकर्ण की विद्या वानरवंशियों के नेत्रों के प्रकाश को रोकती भई सवही कपिध्वज निद्रा से घूमनेलगे और तिनके हाथोंसे हथियार गिरपडे, तब इन सबोंकों निद्रावश अचेतन समान देख सुग्रीवने प्रतिबोधनी विद्या प्रकाशी सो सब वानरवंशी प्रतिबोध भए और हनूमानादिक युद्धको प्रवर्ते वानवंशियोंके बल में उत्साह भया और युद्ध में उद्यमीभए और राक्षसोंकी सेनादबी तब रावण ओप युद्ध को उद्यमी भए तब बड़ा बेटा इन्द्रजीत हाथ जोड़ सिरनिवाय बीनती करता भया हे तात हे नाथ यदिमेरे होते आप युद्धको प्रवनें तो हमारा जन्म निष्फलहै जो तृण नखहीसे उपड़ आवे उसपर फरसी उठापना कहां इसलिये श्राप निश्चिन्त होवें में आपकी प्राज्ञा प्रमाण करूंगा ऐसा कहकर महा हर्षित भया पर्वत समान त्रैलोक्य कंटक नामा गजेन्द्रपर चढ़ युद्ध को उद्यमी भया | कैसाहै गजेन्द्र इन्द्रके गज समान और इन्द्रजीतको अतिप्रिय अपना सब साज लेय मंत्रियों सहित ऋद्धि
से इन्द्रसमान रावणका पुत्र कपियोंपर क्रूरभया सो महाबल का स्वामी मानी श्रावत प्रमाणही बान| वंशियोंका बल अनेक प्रकारायधोंसे जोपूण था सो सब विट्ठल किया सुग्रीवकी सेनामें ऐसा सुभष्ट
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