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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरा ऐसाही का होय है कालको इन्द्रभी निवारिवे श क नहीं औगेकी क्याबात वे राचसवंशी योवा ६९ बड़े बलवान युद्धमें दिया है चित्त जिन्हें ने अनेक वाहनोंपर चढ़े नानाप्रकार के आयुद्ध घरें अनेक अपशकुन भए तोभी न गिने निर्भ भए रामकी सेना के सन्मुखचाए । इति सत्तावनवां पर्व संपूर्णम् ॥ अथानन्तर समुद्रसमान रावण की सेनाको देख नल नील हनुमान जानवन्त यदि अनेक विद्यावरराम हितराम के कार्य को तत्पर महा उदार शूरवीर अनेक प्रकार हाथियों के रथ चढ़े कटकसे निकले जयमित्र चन्द्रप्रभ रतिवर्द्धन कुमुदावर्त महेंद्र भानुमंडल अनुवर दृढ़रथ प्रीति कंठ महा बल नवल सर्व ज्योति सर्वप्रिय बल सर्वसा सर्व शरभभर आम्रष्टि निर्विष्ठ संत्रास विघ्न सूदन नाट वरवर कलोट पालन मंडल संग्राम चपल इत्यादि विद्याधर नाहों के रथ चढ़े निकसे विस्तीर्ण है तेज जिका नानाप्रकारके युद्ध घरे और महासामंत पनाका स्वरूप लिये प्रस्तार हिमवान गंगप्रिय इत्यादि सुभः हवियों के रथ चढे निकसे दुष्ट पूर्णचन्द्र विधि सागर घोष प्रियविग्रह स्कंध चंदन पादा चंद्रकिरण और प्रतिघात महा भैरवकीर्तन दुष्ट सिंह कटि कुष्ट समाधि बहुल हल इंद्रायुध त्रास संकट प्रहार ये नाहरों के रथ चढे निकसे विद्युतक बलशील सुपचरचनधन संभेद विचल साल काल चत्रचर अंगज विकाल लाल ककाली भंग भंगोर्मिः उरचित उतरंग तिलक कील सुषेण चरल करत बली भीमख धर्म मनोहर मुख सुख प्रमत मर्द कमतसार रत्नजटी शिवभूषण दूषणकौल विघट विरावित मनूर खनिने वेला याचेपी महावर नचत्र लुब्ध संग्राम विजयजय नक्षत्रमाल तोद प्रति विजय इत्यादि घोड़ों के रथ चढ़े निकसे कैसे हैं रथ मनोरथ समान शीघ्रवेगको घरे और विद्युतवाह For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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