SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 684
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir .६७३॥ समाचारकहेथे वहसत्र वरणनकिये औगतिरकाचूडामाणसौंपनिश्चितभयाचिन्ताकरबदनकीऔरही छाया होय रही है आंसू पडे हैं सो रामभी इसे देखकर रुदन करने लगगए और उठकर मिले श्री राम यों पूछे हैं हे हनुमान सत्यकहो मेरीस्त्री जीवे है तब हनुमान नमस्कारकरकहताभया । हैनाथ जीवे है आप का ध्यान करे है हे पृथ्वीपते आप सुखी होवो आपके विरहकर वह सत्यवती निरन्तर रुदन करे है नेत्रों के ज नकर चतुरमास कर राखाहै, गुण के समूहकी नदी सीता ताके केश बिखर रहे हैं अत्यम्त दुखी है और बारम्बार निश्वास नाखती चिंताके सागरमें डूबरही है स्वभावहीसे दुर्बल शरीरहै और अब विशेष दुर्बल होगई है रावणकीस्त्री श्राराधे हैं परन्तु उनसे संभाषणकरे नहीं निरंतर तुम्हाराही ध्यानकरे है शरीर का संस्कार सब तज बैठी है हे देव तुम्हारी राणी बहुत दुःखसे जीवे है अब तुमको जो करनाहोय सोकरो अयानन्तर हनुमानके ये बचन सुन श्रीराम चिन्तावानभए मुखकमल कुमलायगया दीर्घ निश्वास नाखतेभए और अपने जीतव्यको अनेक प्रकार निंदतेभए तब लक्ष्मणने धीर्य बंधाया हे महा बुद्धि क्या सोच करोहो कर्तव्यों मनधरो और लचमण सुग्रीवसे कहताभया हे किहकन्धा धिपते तू दीर्घ सूत्री है अब सीताके भाई भामंडल को शीवही बुलावो रावगाकी नगरी हमको अवश्यही जाना है के तो जहाजोंकर समुद्र तिरे अथवा भुजावोंसे ये बात सुन सिंहनाद नामा विद्याधर बोला आप चतुर महाप्रवीण होयकर ऐसी बात मत कहो और हमतो आपके संगहें परन्तु ऐसा करना जिसमें सबका हित । होय हनूमानने जाय लंकाके वन विध्वंसे और लंकामें उपद्रव किया सो रावण क्रोधभयाहै सो हमारी । तो मृत्यु आई है तब जमवन्त बोला तू नाहरहोय कर मृगकी न्याई कहा कायर होयहै अब रावणभी For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy