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श्री रामने जो कहाथा सो सर्व कहा और हाथ जोड़ विनतीकरी हे साधर्मनी स्वर्गविमान समान महल पुरा में श्रीराम विराजे हैं परन्तु तुम्हारे विरहरूप समुद्रमें मग्न काहू ठौर रतिको नहीं पावे हैं समस्त भोगोप
पद्म
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भोग तजे मौन धरे तुम्हारा ध्यान करे हैं जैसे मुनि शुद्धताको ध्यावे एकाग्रचित तिष्ठे हैं वे बीणाकानाद और सुन्दर बियों के गीत कापि नहीं सुते हैं और सदा तुम्हारीही कथाकरे हैं तुम्हारे देखने अर्थ केवल प्राणों को घरें हैं यह बचन हनुमानके सुन सीता आनन्दको प्राप्त भई फिर सजल नेत्रहोय कहती भई ( सीताके निकट हनुमान महा विनयवान हाथ जोड़ खड़ा है ) जानकी बोली हे भाई मैं दुख के सागर में पड़ीहूं अशुभके उदयसे युक्तपति के समाचार सुन तुष्टायमा नभई तुझे क्या हूँ तब हनुमान प्रणाम कर कहता या हे जगत, पूज्ये तुम्हारे दर्शनही से मोहि महा लाभ भया तब सीता मोती समान
यों की बूंद नावती हनुमान से पूछती भई हे भाई यह मगर ग्राह यादि अनेक जलचरों कर भाख महाभयानक समुद्र उसे उलंघ कर तु कैसे आया और सांत्र कहो मेरा प्राणनाथ तैनें कहां देखा और लचण युद्धमें गयाथा सो कुशल चेमसे है और मेरा नाथ कदाचित तुझे यह संदेशा कहकर परलोक प्राप्त हुवा होय अथवा जिनमार्ग में महाप्रवोण सकल रिग्रह का त्याग कर तप करता होय अ मेरे वियोग से शरीर शिथिल योयगया होय और अंगुरी से मुद्रका गिरपड़ी होय यह मेरे विकल्प है, तक मेरे प्रभु का तोसों परिचय न था सो कौन भांति मित्रता भई सो सब मुझसे विशेषता कर कहो त हनूमान हाथ जोड़ सिर निकाय कहता भया हे देवि सूर्यास खडग लक्ष्मण को सिद्धभया और चन्द्रना ने घनी जाय घनीको क्रोध उपजाया सो खरदूषण दण्डक बनमें युद्धकरने को आया और लक्ष्मण उप
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