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पुराण ६४
सत्पुरुष संभाषण न करें इसलिये हम अपना शरीरभी तजार तिहारे काम को उद्यमीहैं मैं जायलका पतिको । समझाय तुम्हारी स्री तुम्हारे लाऊंगा हे राघव महा बाहू सीता का मुखरूपकमल पूर्णमासी के चंद्रमा । समान कांति का पुंज आप निस्संदेह शीघही सीताको देखोगे तब जांबूनन्दमंत्री हनूमान कोपरम हितके वचन कहता भया हेवत्स वायु-पुत्र हमारे सबनके एक तू ही आश्रयहै सावधान लंका को जाना और किसी सो कदाचित् बिरोध नकरना तब हनुमान ने कहो आप की आज्ञा प्रमाण ही होयगा । । । प्रथानंतर हनुमान लंका कोचलिबे को उद्यमी भया तब राम अति प्रीति को प्रासभए एकांत में कहते ।
भए हे वायु पुत्रसीताको ऐसे कहियो, कि हेमहासती तुम्हारे वियोगसे राम का मन एकचण भी सातारूप
नहीं और गम ने योंकही ज्यों लग तुम पराए मशहो त्योलग हम अपनापुरुषार्थ नहीं जानेहं और तुम। । महानिर्मल शील से पूर्णहो और हमारेवियोग से प्राशतजा चाहोहो सोप्राण तजो मत अपना चित्त समाधान
रूप रोखो विवेकी जीवों को आर्त रौद्ध से प्राण न तजने मनुष्यदेह अतिदुर्लभ है उस में जिनेन्द्र का || धर्म दुर्लभ है उस में समाघि मरण दुर्लभ है जो समाधि मरण न होय तोयह मनुष्य देह तुषवत् प्रासार । || हैऔर यह मेरे हाथ की मुद्रिका जाकर उसे विश्वास उपजे सो ले जावो और उन का चुडामणि महाप्रभा
रूप हमपैलेाइयो तब हनमान् ने कही जो आप आज्ञा करोगे सो ही होयगा, ऐसा कहकर हाथजोड़नमस्कार कर फिर लक्षमण से नमीभूत होय बाहिर मिकसा विभूति कर परिपूर्ण अपने तेजसे सर्व दिशा को उद्योत करता सुग्रीव के मंदिर आया और सुग्रीव से कही जौलग मेरा श्रावना न होय तो लग तुम। | वहुत सावधान यहांहीरहियो इसभांति कहकर सुन्दर हे शिखर जिसके ऐसा जो विमान उसपर ब्रहा।
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