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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराव २॥ तिनकी ज्योति के समूहसे श्राकाश नानारंगरूपहोयगया काहू चतुर रंगेरेका रंगा वस्र है हनुमान के || वादित्रों का नाद सुन कपिवंशी हर्षित भए जैसे मेघकी ध्वनि सुन मोर हर्षित होय मुवि ने सबनगर की शोभा कराई हाट वाजार उजाले मंदिरों पर ध्वजा चढ़ाई ग्लों के तोरणोंसे द्वार शोभित किए हनूमान के सब सन्मुख गए सबका पूज्य देवोंकी न्याई गरमें प्रवेश किया मुग्रीव के मंदिर श्राए मुग्रीव ने बहुत आदर किया और श्रीराम का समस्तवृतांत कहा तब ही मुग्रीवादिक हनूमान सहित परमहर्ष को धरते श्रीरामके निकट पाएसो हनुमान रामको देखताभयामहासुन्दर सूक्ष्म स्निग्धश्याम मुगन्ध वक्र लंबे महामनोहरहें केश जिनके सो लक्ष्मीरूपवल इनकर मंडित महा मुकुमारअंग जिनका सूर्यसमान प्रतापी चन्द्रसमान कांति धारी अपनी कांति से प्रकाश के करण हारे नेत्रों को प्रानन्द के कारण महामनोहर अतिप्रवीण श्राश्चर्यकारो कार्यके करणहारे मानो स्वर्गलोक से देवहीं पाएहैं देदीप्यमान निर्मल स्वर्ण के कमल के गर्भ समान है प्रभा जिनकी सुन्दर नेत्र सुन्दर श्रवण सुन्दर नासिका सबांग सुन्दर मानों साचात् कामदेव ही हैं कमल नयन नवयोवनचढ़े धनुष समान भौंह जिन की पूर्णमासी के चन्द्रमा समान बदन महामनोहर मूंगा समान लालहोंठ कुन्द के पुष्प समान उज्वल दंत शंखसमान कंट मृगेन्द्र समान साहस सुन्दरकटि सुदर बक्षस्थल महाबाहू श्रीवत्सलक्षण दक्षणावर्त गंभीरनामे आरक्तकमल समान कर चरण महाकोमल गोल पुष्ट दोऊ जंघा और कछुवे की पीठ समान चरण के अग्रभाग महाकांति को घरे अरुण नव अतुल बल महायोधा महा गंभीर महा। उदार समचतुर संस्थान बजू वृषभ नाराच संहनन मानों सर्व जगत्रय की सुन्दरता एकत्र कर बनाए । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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