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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -६४० पद्म | वहांकी अद्भुत स्वना देख थकित होय रहा हनूमान खरदूषणकी बटी मनंगकुसमा रावण की भानजा उसके खरदूषणका शोक कर्म के उदयाले जो शुभ अशुभ भावे उसे कोई निवारिखे शक्त नहीं मनुष्यों की क्या शक्ति देवोंसे अन्यथाभी न होय इतने द्वारेआय अपने आगमका वृतांत कहा सो अनंगफुसमा की नर्मदया नामा दागली द को भीतर लेयगई अनंगकुसमा ने सकल बृत्तांत पूछा सो श्रीभूत ने नमस्कारकर विस्तारसे कहा दण्डकनमें श्रीराम लक्षमणका प्रावन सम्बूकका बध खरदूषणसे युद्ध फिर भले भले सुभटों सहित खरदूषापका मरण यह वार्तासुन अनंगकुससा मूर्याको प्राप्तभई तब चन्दन के जल से सींच सचेतकरी अनंग कुसमा अश्रुपात डारती विलापकरतीभई हाय पिता हाय भाई तुम कहां गए एक बार मुझे दर्शन देवो वचनालाप करो महा भयानक बनमें भूमिगोचरियों ने तुमको कैसे हते इसभांति पिता और भाई के दुःखसे चन्द्रनखाकी पुत्री दुखी भई सो महा कष्टसे सखियोंने शांतिता को प्रासकरी और जे प्रवीण उत्तम जनथे उन्होंने बहुत संबोधी तब यह जिनमार्गमें प्रवीण समस्त संसार के स्वरूपकोजान लोकाचारकी रीति प्रमाण पिताके मरणको क्रिया करतीभई फिर दूतको हनुमान महा शोक के भरे सकल वृत्तान्त पूछतेभये तब सकल वृत्तान्त कहा सो हनूमान खरदूषणके मरणसे अति क्रोध को प्राप्तभया भौंह टेढ़ी होयगई मुख और नेत्र आरक्तभये तब दूतने कोप निवारने के निमित्त मधुर स्वरों से वीनतीकरी हे देव किहकंधपुर के स्वामी सुग्रीव तिनको दुख उपजा सोतो आप जानोही हो साहसगति विद्याधर सुप्रीवका रूपवनाय आया उससे पीड़ितभया सुग्रीव श्रीरामकेशरण गया राम सुग्रीव का दुख दूर करवे निमित्त किहकंधापुर आए प्रथमतो सुग्रीव और उसके युद्धभया सो सुग्रीव से वह जीता न गया For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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