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पु
बन्न || उसके पुत्र विबुख और वियुदाभ और विद्युद्वेग और विधुत्व इत्यादि विद्या धरों के वंश में भनक
राजा भए अपने पुत्रको राज देय जिन दीचा पर राग द्वेषका नाश कर सिद्ध पदको प्राप्त भए केएक देवलोक मोह पाशसे बंधे राज विषे मरकर कुगति को गये। ___ अब संजयति मुनि के उपर्सगका कारण कहें हैं कि विद्युइंष्ष्ट्र नामा राजा होऊ श्रेणीका अधि
ति विद्यावलसे उद्धत विमानमें बेटा विदेह क्षेत्रमें गया तहां संजयंति स्वामी को ध्यानारूढ़ देखा। जिनका शरीर पर्वत समान निश्चल है उस पापी ने मुनि को देखकर पूर्व जन्म के विरोधसे उन को उठाकर पंचगिरि पर्वत पर घरे और लोकों को कहा कि इसे मारो पापी जीवोंने लष्टि मुष्टिपाषाणादि । अनेक प्रकार से उनको मारा मुनि को शमभाव के प्रसाद से रंच मात्र भी क्लेश न उपजा दुस्सह उपसर्ग को जीत लोक लोकका प्रकाशक केवल ज्ञान उपजा, सर्वदेव बंदना को श्राए, धरणीन्द्र ।। भी पाए, वह धरणींद पूर्व भव में मुनि के भाई थे इस लिये क्रोध कर सर्व विद्याघरों को नाग फांस से | बांधे, तब सबन ने विनती करी कि यह अपराध विद्युद्दष्ट का है, तब और को छोड़ा और विद्युदृष्ट को न छोड़ा, मारणे को उद्यमी भए तब देवों ने प्रार्थना कर के छुड़ाया, छोड़ातो परन्तु विद्या हर ली, तब इसने प्रार्थना करी कि हे प्रभो मुझे विद्या कैसे सिद्ध होयगी, तब धरणीन्द्र ने कहा कि संजयति स्वामी की प्रतिमा के समीप तप क्लेश करनेसे तुम को विद्या सिद्ध होयगी परन्तु चैत्यालयके उलंघन से तथा मुनियों के सलंघन से विद्या का नाश होंवेगा इस लिये तुमको तिनकी बन्दना करके धागे गमन | ॥ करना योग्य है । तब घरपीन्द ने संजयति स्वामी को पूछा कि हे प्रभो विद्युदंष्ट्र ने पापको उपसर्ग
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