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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पद्म | हैं नदीकेतटपर मनोहर स्थलदेख हाथियों के रथसे उतरे लक्षमण प्रथमही नानास्वादको धरे सुन्दर मिष्टफल पुराण ॥५५॥ लाया और सुगन्ध पुष्प लाया फिर राम सहित जल क्रीडाका अनुरागी भयो कैसाहै लक्षमण मुणों की। खान है मन जिसका जैसी क्रीड़ा इन्द्र नागेन्द्र चक्रवर्ती करें तैसी राम लक्षमणने करी मानों वह नदी। श्रीरामरूप कामदेवकोदेख रतिसमान मनोहररूप धारतीभई कैसी है नदी लहलहाट करतीजेलहर तिनकी । माला कहिये पंक्तिउससे मर्दितकिये हैं श्वेत श्याम कमलोंके पत्र जिसने और उठे हैं झाग जिसमें भ्रमररूप है उड़ा जिसके पक्षियोंके जे शब्द तिनकर मानो मिष्टशब्दकरहैं वचनालाप करहें राम जलक्रीझकर कमलों। | के बनमें छिपरहे फिर शीघही पाए जनकसुता से जल केलि करतेभए इनकी चेष्टा देख वन के तिर्यच । | भी और तरफ से मन रोक एकाग्रचित्त होय इनकी अोर निरखतेभए कैसेहैं दोनोंवीर कठोरता से रहित । है मन जिसका और मनोहर है चेटा जिनकी सोता गान करतीभई सो गानके अनुसार रामचन्द्र ताला | देतेभए मृदंगसेभी अति सुन्दर राम जलकोड़ामें आसक्त और लक्षमण चौगिरदा फिरे केसाहै लक्षमण भाईके गुणों में आसक्त है बुद्धि जिसकी राम अपनी इच्छा प्रमाण जल कोड़ाकर समीप के स्गों को । आनन्द उपजाय जल क्रीड़ा से निबृत्तभए महा प्रसक्त जे बनके मिष्टफल तिनसे चुधा निवारण कर । लता मडपमें तिष्ठ जहां सूयका आताफ नहीं ये दवों सारिखे सुन्दर नानाप्रकार की सुन्दर कथा करते भये | सीता सहित अति आनन्दस तिष्ठे कैसीहै सीता जययुके मस्तकपर हाथ है जिसका वह राम लक्ष्मण से कहे हैं हे प्रात यह नानाप्रकारके बृक्ष स्वादु फलकर संयुक्त और नदी निर्मल जल की भरी और | जहां लतावोंके मण्डपऔर यह दण्डकनामा गिरि अनेक रनोंसे पूण यहां अनेक स्थानक क्रीझ करने । हैं इस गिरिके निकट एक सुन्दर नगर बसावें और यह वन अत्यन्त मनोहर औरोंसे अगोचर यहाँ नि For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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